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|| A warm welcome to you, for visiting this website - RAMESH KHOLA || || "बुद्धिहीन व्यक्ति पिशाच अर्थात दुष्ट के सिवाय कुछ नहीं है"- चाणक्य ( कौटिल्य ) || || "पुरुषार्थ से दरिद्रता का नाश होता है, जप से पाप दूर होता है, मौन से कलह की उत्पत्ति नहीं होती और सजगता से भय नहीं होता" - चाणक्य (कौटिल्य ) || || "एक समझदार आदमी को सारस की तरह होश से काम लेना चाहिए, उसे जगह, वक्त और अपनी योग्यता को समझते हुए अपने कार्य को सिद्ध करना चाहिए" - चाणक्य (कौटिल्य ) || || "कुमंत्रणा से राजा का, कुसंगति से साधु का, अत्यधिक दुलार से पुत्र का और अविद्या से ब्राह्मण का नाश होता है" - विदुर || || सचिव बैद गुर तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास - गोस्वामी तुलसीदास (श्रीरामचरितमानस, सुंदरकाण्ड, दोहा संख्या 37) || || जब आपसे बहस (वाद-विवाद) करने वाले की भाषा असभ्य हो जाये, तो उसकी बोखलाहट से समझ लेना कि उसका मनोबल गिर चुका है और उसकी आत्मा ने हार स्वीकार कर ली है - रमेश खोला ||

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28 January 2024

Tiger

सरिस्का से फिर आया बाघ हरियाणा के रेवाड़ी जिले में 17.08.2024 

🔴सावधान🔴

*झाबुआ में पहुंचा टाइगर*


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सरिस्का वन्य जीव अभ्यारण से आया हुआ बाघ रेवाड़ी में ही घूम रहा है या राजस्थान लौट गया है 

इस अनिश्चितता की स्थिति में रेवाड़ी जिले के नांगल जमालपुर के खेतों में बाघ (शेर) के पैरों के निशान देखने का दावा किया जा रहा है यदि आप में से कोई बाघ के पदचिन्हों को पहचान सकते है तो इस वीडियो को देख कर कमेंट में लिखें कि ये बाघ (शेर) के पैरों के निशान है या किसी अन्य जानवर के,  ताकि लोगों को सही जानकारी मिल सके 

वीडियो देखने के लिए यहाँ क्लिक करें 

Video

 पदचिन्ह

 पदचिन्ह
 पदचिन्ह

...... कमेंट में लिखें , ये किस जानवर के पैरों के निशान (पदचिन्ह) हो सकते है  

27 January 2024

Important Judgement

 न्यायालय (कोर्ट) के कुछ महत्वपूर्ण फैसले की न्यूज़  






07 January 2024

बाबा सायर

     बाबा सायर मंदिर, डहीना    

ब्रह्मलीन बाबा सायर 

   ज्वाइन व्हाट्सप्प ग्रुप 


बाबा सायर मंदिर, डहीना 

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VIDEOS

सतगुरु जी मेरे साथ हैं अब डरने की क्या बात  New

तुम साथ हो जो मेरे किस चीज है 

भोले तेरे दरबार में 

सदा वसतं हृदयाविन्दे भवंभावनी सहितं नमामि

मेरे शम्भू मेरे संग रहना 

लौट के मुश्किल मेरा घर को जाना हो गया 

जय जय शम्भू 

हम तो बाबा के भरोसे

भोले का भक्त 

बाबा सायर धाम

दादा सायर

जहाँ जहाँ तेरे पांव पड़े 

लाडला चेला 

तेरा नशा है 

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तीज मेला 2024

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मकर सक्रांति महोत्सव 2024 



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बाबा सायर का इतिहास 
गाँव डहीना रेवाड़ी जिले में स्थित है , पहले यह गाँव महेंद्रगढ़ जिले में आता था उससे पहले यह गाँव गुरुग्राम (गुड़गाँवा) जिले में आता था | ऐसा कहा जाता है कि गाँव डहीना "दादा रंगराज" ( कई लोग "दादा दुर्गा प्रसाद" नाम भी बताते है) ने बसाया था |  जिनकी याद में "बाबा भैया" का मंदिर बनाया हुआ है | जिसे खेड़ा का धनि भी कहते है अर्थात इन्होने ही यह खेड़ा (गाँव ) बसाया था | 
इनके चार पुत्र थे, कहीं कहीं सुनने में आता है कि इनके पांच पुत्र थे 
1. सायर 
2. राजू 
3. पेचू 
4. ना औलाद (नाम ज्ञात नहीं है)

5. जैना (सुनने आता है कि जैना उनका पाँचवा पुत्र था )

1. सायर : "दादा रंगराज" उर्फ़  "दादा दुर्गा प्रसाद" जी का सबसे बड़ा पुत्र  "शेर सिंह" था जिसका नाम अपभ्रंश होते हुए "सायर सिंह" हुआ और बाद उन्हें लोग "सायर" के नाम से जानने लगे जिसे अब हम "बाबा सायर" कहते है  | जिनकी याद में "बाबा सायर वाला जोहड़ और मंदिर" आज भी गाँव डहीना में स्थित है 
continue................

18 December 2023

Beneshwar

 हम भारतीय इतने नादान है कि कोई नस्त्रेदमंन जैसा विदेशी कुछ भविष्यवाणी कर दे दो उसे ढोल बजा बजा कर अपनी पीडियो तक इस बात को पहुंचाते है कि विदेशी कितने विद्वान होते है और हम कितने बुद्धू हैं  

जबकि हमारे देश के भविष्यवक्ताओं के बारे में हम जानते नहीं है या जानना नहीं चाहते है या जान जाते है तो उसका जिक्र किसी से नहीं करते है , ऐसी प्रवृति ने ही भारत की अतुल्य ज्ञान संस्कृति को नष्ट कर दिया है 

मैं ( RAMESH KHOLA ) आपको यहाँ राजस्थान की मरू भूमि में वागड़ धाम (नजदीक बांसवाड़ा-डूंगरपुर) में स्थित बेणेश्वर धाम (त्रिवेणी संगम) के " महंत मावजी महाराज" के बारे में कुछ बताना चाहता हूँ  | बेणेश्वर धाम (त्रिवेणी संगम) महंत मावजी महाराज द्वारा  विक्रम संवत 1784 में  बेणेश्वर में "गद्दी" स्थापित कर माव परंपरा आरंभ की ,जो माही नदी त्रिवेणी पर स्थित है । " महंत मावजी महाराज" को भगवान विष्णु के अंशावतार के रूप में भी जाना जाता है | 


जन्म : इनका जन्म औदीच्य ब्राह्मण (दालम ऋषि) के घर में विक्रम सम्वंत 1771, के माघ मास की शुक्ल पक्ष पंचमी को हुआ , इनकी माता का नाम केशर था | 12 वर्ष की आयु में घोर तपस्या के बाद विक्रम सम्वंत 1784 , के माघ मास की शुक्ल पक्ष एकादशी को संत रूप में प्राकट्य हुआ | 

मावजी महाराज ने चादर पर चित्रों के माध्यम से भी भविष्य की तस्वीर बनाई थी 

ध्यान से देखने पर आप पाएंगे  कि गोल चकरीनुमा आकृति , आदमी के हाथ में माउस जैसा है सामने कम्प्यूटर, की-बोर्ड जैसा है, रॉकेट, मिसाइल, अंतरिक्ष यान , सेटेलाइट, लोग फोन पर बात कर रहे हैं।

भविष्यवाणियां : मावजी महाराज ने बांस की कलम और लाक्षा (लाख) की स्याही से 72 लाख 66 हजार भविष्यवाणियां अपने हाथ से बागड़ी भाषा में लिखी जो आज भी साबला (डूंगरपुर) स्थित मावजी महाराज के जन्म स्थान पर बने मंदिर में कर रखी गई हैं।

बागड़ी भाषा में लिखी हस्तलिपियाँ 

बागड़ी भाषा में महंत मावजी महाराज द्वारा लिखी कुछ भविष्यवाणियां :

भविष्यवाणी बागड़ी भाषा  : धरती तो तांबा वरणी होसी  

अर्थ हिंदी भाषा  : धरती तपकर तांबे के रंग की हो जाएगी, धरती का तापमान बढ़ना  अर्थात ग्लोबलवार्मिंग )

भविष्यवाणी बागड़ी भाषा  : पर्वत गिरी ने पाणी होसी 

अर्थ हिंदी भाषा : पर्वत पिघलकर पानी बनेंगे (ग्लेसियर पिघलना ) 

भविष्यवाणी बागड़ी भाषा  : जमीन आसमान का पर्दा टूटेगा 

अर्थ हिंदी भाषा : जमीन और आसमान के बीच की दीवार टूटेगी, (ओजोन मंडल में छेद )

भविष्यवाणी बागड़ी भाषा  : भेंत में भभुका फूटेगा

अर्थ हिंदी भाषा : दीवारों से पानी आएगा (घरों में नल)

भविष्यवाणी बागड़ी भाषा  : डोरिये दीवा बरेंगा

अर्थ हिंदी भाषा : डोरियों से दीपक जलेंगे (बिजली) 

विष्यवाणी बागड़ी भाषा  : परिऐ पाणी वेसाएगा

अर्थ हिंदी भाषा : पानी बेचा जाएगा (बोतलों में पानी बिकता है ) 

भविष्यवाणी बागड़ी भाषा  : वायरे बात होवेगा 

अर्थ हिंदी भाषा : हवा के माध्यम से बात होगी (मोबाइल) 

भविष्यवाणी बागड़ी भाषा  : बग सरणे हंस बिसती, हंस करे बग नी सेवा 

अर्थ हिंदी भाषा : बगुले की शरण में हंस बैठेगा और हंस, बगुले की सेवा करेगा (अयोग्य व्यक्ति की सेवा योग्य व्यक्ति करेगा ) 

भविष्यवाणी बागड़ी भाषा  : चार जुगना बंधन तोड़ी

अर्थ हिंदी भाषा : चार युगों से चले आ रहे जाति-धर्म के बंधन टूटेंगे (अन्तर्जातीय विवाह) 

भविष्यवाणी बागड़ी भाषा  : बधनि सिर थकी भार उतरयसी 

अर्थ हिंदी भाषा : बैलों के सिर पर बोझ हल्का होगा (ट्रेक्टर आदि का प्रयोग ) 

भविष्यवाणी बागड़ी भाषा  : बहू बेटी काम भारे, सासु पिसणा पिसेगा 

अर्थ हिंदी भाषा : बहू बेटियां बाहर के काम करेंगी और सास घर का (नौकरीपेशा कामकाजी महिलाएं ) 

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बेणेश्वर धाम पहुंचने के लिए Google Map Link

30 November 2023

कटु वचन


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29.11.2023
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🚩जय सनातन🚩
*अहिंसा परमो धर्म:*
हमें ये अधूरा श्लोक रटाया गया और हमारे मन मस्तिष्क में अहिंसा के नाम पर भिरुता को भर दिया गया , यानी अहिंसा की आड़ में  कायरता हमारे अंदर भर दी गई 

अब पूरे श्लोक का अर्थ देखे

*अहिंसा परमो धर्म:,*
*धर्म हिंसा तथैव च ।*

अर्थ सहित व्याख्या :

 'अहिंसा परमो धर्म:' 
अर्थात :
*अहिंसा ही परम धर्म है*

 "धर्म हिंसा तथैव च" अर्थात :
 *धर्म की रक्षा के लिए हिंसा करना भी परम धर्म है*

🚩🚩🚩🚩🚩
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ऐसा बटन दबाना 
घर भी बने गरीब का , कुटिया की रक्षा हो |
मंदिर तिलक कमंडल , चुटिया (चोटी ) की रक्षा हो ||
खेत में लगे किसान की , खटिया की रक्षा हो |
ऐसा बटन दबाना कि , बिटिया की रक्षा हो ||
                                                                                             - 23.11.2023
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विदेशी बम्भो पर भारी भारतीय पटाखे 
एक साल से ज्यादा समय हो गया रूस यूकेन युद्ध को और एक मास से ज्यादा समय हो गया इजरायल और हमास युद्ध को , लेकिन पर्यावरण दूषित होने की केवल एकमात्र वजह एक दिन पूरा नहीं बल्कि 3 -4 घण्टे की पटाखे बाजी है वो भी केवल दीपावली की , तो इससे हम ये कह सकते है कि विदेशी बम्भो पर भारी भारतीय पटाखे ,  अभी 23 नवम्बर से शादियाँ  शुरू हो रही है , वो पटाखे और अन्य धर्म / मजहब के उत्सवों में छूटने वाले पटाखे , पर्यावरण को बिलकुल भी दूषित नहीं करते |
आप कभी विचार करना कि दीपावली से लगभग 1 महीना पहले और लगभग 15 -20 दिन बाद कोई टीवी News चैनल पर्यावरण पर चर्चा करता हो , या दीपावली के बाद प्रदूषण दूर करने के लिए कोई विशेष अभियान जैसे वृक्षारोपन आदि चलाया जाता हो , 10 महीने किसी को चिंता है 
दूसरी बात ध्यान से देखना होली के समय जल ख़त्म हो जाता है , सभी टीवी News चैनल अपना ज्ञान देना शुरू कर देते है , वैसे साल भर खुले नल चलते है किसी का ध्यान नहीं लेकिन होली के दिन , तो बस मानो समुद्र ही सूख  गया हो 
अब आप विचार करो कि वास्तव में पर्यावरण /  जल के हितेषी हैं  या कोई और छिपा एजेंडा हम पर थोपने की कोशिश है
अपनी संस्कृति की रक्षा करो  - रमेश खोला , 13.11.2023






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केतली गर्भ संभूतं , शक्कर पत्ती मिश्रतम
कप मध्य विराजते , चाय चण्डिकाय नमो नमः 
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जिंदगी किस्मत से चलती है,
दिमाग से चलती तो बीरबल बादशाह होता, अकबर नहीं ।
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 ये प्रदूषण केवल दीपावली के पटाखों से ही क्यों बढ़ता है ?
 किसी चुनावी जीत या अन्य आयोजनों पर छूटने वाले  पटाखों से क्यों नहीं बढ़ता ? लाखों टन रोज कोयला फूँक  कर बिजली बनती है , अरबो खरबो  साधन दिनरात चलते है , अरबों फैक्ट्रियां चलती है उनसे प्रदुषण नहीं होता , केवल दीपावली के 10-15 दिन पहले ये नाटक शुरू होता है और दीपावली के बाद ये खत्म हो जायेगा , फिर अगली दीपावली का इन्तजार रहेगा और तो और  यूक्रेन युद्ध में लगभग 10 महीनों से अनगिनत बम  गिराए जा रहे है उनसे किसी वैशविक संस्था का दम  नहीं घुट रहा ? - रमेश खोला , 25.10.2022
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रूस और यूक्रेन के बीच 24 फरवरी 2022 से युद्ध शुरू हुआ था और अब भी चल रहा है , इन 7-8 महीनो में न जाने कितने हजार टन विस्फोटक का प्रयोग हुआ है , लेकिन कमाल का विस्फोटक है कि पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुंचा रहा क्योकि न भारत के सनातन विरोधियों का ब्यान आया और न ही वैश्विक पर्यावरण रक्षक संस्थाए इसे पर्यावण पर बहुत बड़ा खतरा मान इस युद्ध के विरुद्ध संसार को खड़ा कर पायी और भारत में देखो दिपावली के पटाखे न जाने किस प्रकार के बारूद से बने होते है कि बजने से पहले ही कुछ सनातन संस्कृति विरोधियो की साँस फूला देते है - रमेश खोला , 02.10.2022
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दीपावली आने वाली है , अभी से ही कुछ सनातन और संस्कृति के विरोधी अपनी नाक खुजलाना शुरू कर देंगे , ताकि दीपावली तक पटाखों पर बैन करवा सके | पूरे साल किसी भी उत्सव, ब्याह-शादी , पार्टियों में चलने वाले पटाखे उनकी नज़र में पर्यावरण हितैषी और दीपावली की रात 2-3 घंटे चलने वाले पटाखे उनका दम घोटने वाले होते है - रमेश खोला , 02.10.2022
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भूला बिसरा और वास्तविक अंबेडकर
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पटाखे और उनके प्रकार
( यह एक व्यंग्य है , कोई समझ सके तो अच्छा और न समझे तो और भी अच्छा)
साल के 365 दिनों में केवल 1 दिन (बल्कि पूरा दिन भी नहीं मात्र 4-5 घंटे ) दीपावली की आतिशबाजी - वायु प्रदुषण करती है
364 दिनों में इलेक्शन में जीत के पटाखे - वायु प्रदुषण नहीं करते
364 दिनों में भारत की हार पर चलने वाले पटाखे - वायु प्रदुषण नहीं करते
364 दिनों में हिन्दू धर्म को छोड़ कर अन्य धर्मो के उत्सवों में होने वाली आतशबाजी - वायु प्रदुषण नहीं करती
364 दिनों में वाहन , फैक्ट्रियां आदि - वायु प्रदुषण नहीं करते
  - रमेश खोला  01.11.2021
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भारत और भारत की राष्ट्रवादी सरकार (मोदी सरकार) का डर चीन में इतना है कि  कभी "वन चाइल्ड पॉलिसी" अपनाने वाले चीन  ने 2016 में "टू चाइल्ड पॉलिसी" और 2021 में "थ्री चाइल्ड पॉलिसी" अपना ली है 
  - रमेश खोला  02.10.2021
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विजय विट्ठल मंदिर ( कर्नाटक )
इस मंदिर में 56 संगीतीय स्तंभ जिनसे सात स्वरों का संगीत निकलता है केंद्र में  एक मुख्य स्तम्भ है (केंद्रीय स्तम्भ को एक वाद्ययंत्र के रूप में बनाया गया है ) इसके चारों और छोटे छोटे 7 स्तम्भ हैं, जब आप इन्हें चंदन की लकड़ी से छूते हो तो इनसे "सा रे गा मा" के स्वर निकलते हैं
रिसर्च से पता चला है कि ये खम्भे ग्रेनाइट के एक उन्नत मिश्रण Geo Polymer में सिलिकॉन पार्टिकल्स और दूसरे मिश्र धातुओं से मिलकर बने हैं, लेकिन वैज्ञानिक हैरान हैं कि Geo Polymer का अविष्कार तो 1950 के दशक में ( 20 वीं शताब्दी में ) सोवियत यूनियन में हुआ था पर ये स्तम्भ तो 15 वीं शताब्दी के हैं यानि की लगभग 500 साल पुराने हैं. अब आप बताओ कि Geo Polymer का आविष्कार कहाँ हुआ था ?
अब तो मानोगे की भारत ही विश्व गुरु था                     - रमेश खोला  27.09.2021
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देह धरे को दण्ड है, सब काहू को होय।
ज्ञानी कटे ज्ञान से, मूरख काटे रोय।। 
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अपने भाई को जी भर दुलार देती है ,
अपनी खुशियाँ भी भाई पर वार देती है !
लड़ता है भाई बेशक़, वजह - बेवजह,
बहने तो बस स्नेह और प्यार देती है !! 
- रमेश खोला , 22.08.2021
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दीपावली आ रही है, हिन्दू त्यौहार विरोधी लॉबी जिन्हे होली के अवसर पर पानी डालने से धरती के पानी ख़त्म होने का अहसाह होता है, उनकी नाक में दिवाली के पटाखे का धुंआ पटाख़े छूटने  से पहले ही घुस जायेगा और पटाखों का विरोध शुरू कर देंगे - रमेश खोला , 07.11.2020
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खाके देशी रोट , कमाऊँ खेतां मै ,
फौजी बन, मैं आन बचाऊँ  देशां मै  I 
चौपाला में हंसी-ठठ्ठा और सांग चले ,
नंबर वन हरियाणा सै यो किस्सां मै  II
                                     - रमेश खोला , 01.11.2020
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कर्तव्य हमारी संस्कृति है , प्राचीन काल से हमारे पूर्वज अपने कर्तव्यों के लिए अपने निजी जीवन को भी देश / समाज हित  में लगा देते थे राजा शिवि ने अपने कर्तव्य पालन करते हुए अपना स्वयं का मांस दान कर दिया , राजा हरिश्चंद्र , राजा श्री राम चंद्र ( भगवान  राम ) आदि अनेको उदाहरण है अर्थात अधिकार से पहले कर्तव्य का स्थान है। संविधान में मौलिक कर्तव्य सरदार स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिश पर  सन  1976 में 42वें संशोधन द्वारा जोड़ा गया,  वर्तमान समय में  प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य है कि वह संविधान और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्र ध्वज और राष्ट्र गान  आदि राष्ट्रीय प्रतीकों का आदर करते हुए वह भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करे और उसे अक्षुण्ण रखे - रमेश खोला 02.10.2020
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खबर - दुनिया को अगली महामारी के लिए तैयार रहना चाहिए, कोरोना आखिरी नहीं-विश्व स्वास्थ्य संगठन प्रमुख
खबर का जवाब - जब तक धरती पर चीन का अस्तित्व है तब तक तैयार ही रहना चाहिए , "विश्व की बीमारी चीन" का अंत जरुरी है, चोर को नहीं चोर की माँ का खात्मा जरुरी है ताकि आगे जन्म ही न दे सके , बीमारी की जड को काटना जरुरी है - रमेश खोला , 08.09.2020
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जो भारतीय सेना के शौर्य का सबूत मांगते है उन्हें फाइटर प्लेन से सबूत वाली जगह पर ड्रॉप करने की व्यवस्था कर दी जाये तो अपनी आँखों से हमारे शूर वीरो के पराक्रम का सबूत देख कर संतुष्ट हो जायेंगे - रमेश खोला , 02.09.2020
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लोकतंत्र का हृदय " ‘राइट-टू-रिकॉल’ " ग्राम पंचायत स्तर पर , लाने वाला हरियाणा भारत का प्रथम राज्य होगा , माननीय प्रधानमंत्री जी से निवेदन है कि केवल ग्राम पंचायत स्तर पर ही नहीं बल्कि विधानसभा , लोकसभा में भी इसे लागू किया जाये
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         भारत का यही दुर्भाग्य रहा है कि हम अपनी उपलब्धियों को स्वयं ही नकार देते है जबकि दूसरे देश अपनी अदनी सी उपलब्धि को भी हम पर थोपने में सफल  हो जाते है  जैसे हनुमान चालीसा में लिखी गयी धरती से सूरज की दूरी "जुग सहस्त्र जोजन पर भानु। लील्यो ताहि मधुर फल जानू।। " को स्वीकार नहीं करते बल्कि उसके हजारो वर्ष बाद दूसरे देश के लोगो द्वारा बताई गयी उसी दूरी  को सही मान लेते है ,रामसेतु जो समुद्र पर संसार का प्रथम सबसे लम्बा मानव निर्मित पुल है जिसका निर्माण भारत ने ( श्रीराम ने नल-नील और वानर सेना की सहायता से ) करवाया था , इस गर्व की बात को मानने की बजाय श्रीराम को ही काल्पनिक मानना ही थाकथित बुद्धिजीवियों को सरल काम लगा तभी विदेशियों ने रामसेतु को Adam's Bridge कहना शुरू कर दिया , आओ Adam के बारे में कुछ जाने, कि ये कौन थे ?  

                ईसाई और इस्लामी परंपराओं के अनुसार  Adam और Eve (एडम और ईव) मूल मानव युगल यानि धरती पर प्रथम मानव जोड़ा या यूँ कहें कि  ईसाई और इस्लामी परंपराओं के अनुसार मानव जाति के माता-पिता थे , यहाँ आपको ये भी  भी याद दिलाना जरुरी है कि  भारत के मत्स्य पुराण के अनुसार मनु और अनंति को मूल मानव युगल यानि  प्रथम मानव जोड़ा या यूँ कहें कि मानव जाति के माता-पिता माना जाता है , ऐसे ही कोरोना की दवा रूस से पहले भारत (पतंजलि/ बाबा रामदेव) ने बना ली थी लेकिन WHO के मना करने पर भी हम भारतवासी रूस द्वारा कोरोना की दवा बनाने के दावे को सही मान रहे है , भारवासियों में आत्मविश्वास की इस कमी को कुछ गुलामीपसंद सदा बनाये रखना चाहते है , परन्तु वास्तव में भारत विश्व गुरु था , है और रहेगा " जय भारत - जय भारती " वन्दे  मातरम  - रमेश खोला, 12.08.2020

                            

                                                                $$$$$$$$$$$$$$$

वाह ! क्या बात है .........................मानव स्वभाव भी अजीब ही है....................

   "किसी व्यक्ति को जानवर कहो तो वो नाराज हो जाता है

और उसे शेर कह दो तो फूला नहीं समाता है" - रमेश खोला, 08.08.2020 

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सोवा साधु जगाइए, करे नाम का जाप ।

यह तीनों सोते भले, सकित,सिंह और साप ॥
01.08.2020

27 November 2023

23 November 2023

Panchang

पंचांग



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     📜 19 नवम्बर 2024
                 मंगलवार
 🏚नई  दिल्ली अनुसार🏚

🇮🇳शक सम्वत- 1946
🇮🇳विक्रम सम्वत- 2081
🇮🇳मास- मार्गशीर्ष 
🌓पक्ष- कृष्णपक्ष
🗒तिथि- चतुर्थी - 17:30 तक
🗒पश्चात्- पंचमी 
🌠नक्षत्र- आर्द्रा - 14:56 तक
🌠पश्चात्- पुनर्वसु 
💫करण- बालव - 17:30 तक
💫पश्चात्- कौलव
✨योग- साध्य - 14:54 तक
✨पश्चात्- शुभ
🌅सूर्योदय- 06:47
🌄सूर्यास्त- 17:25
🌙चन्द्रोदय- 20:37
🌛चन्द्रराशि- मिथुन - दिनरात 
🌞सूर्यायण - दक्षिणायन 
🌞गोल- दक्षिणगोल
💡अभिजित- 11:45 से 12:27
🤖राहुकाल- 14:46 से 16:05
🎑ऋतु- हेमन्त 
⏳दिशाशूल- उत्तर 


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 साल  2081

मुबारक हो तुम्हे नया साल,
फलो फूलो , जैसे आम का फाल 
पतझर न आये जिन्दगी में कभी ,
प्रभु की माया कर दे आपको निहाल - रमेश खोला 



कलि सम्वत ( प्राचीन भारतीय साल ) :- 5127  

भारतीय शास्त्रों एवं धर्मग्रंथों के अनुसार : कलियुग की शुरुआत, कलि सम्वत प्रथम, फाल्गुन मास, शुक्ल पक्ष सप्तमी (18 फरवरी 3102 ईसा पूर्व ) की मध्य रात्रि को हुई थी। इस दिन योगेशवर भगवान श्री कृष्ण जी ने वैकुंठ लौटने के लिए पृथ्वी छोड़ी थी।
आधुनिक विज्ञान के अनुसार : खगोलशास्त्री और गणितज्ञ आर्यभट्ट के अनुसार कलियुग की शुरुआत 3102 ईसा पूर्व में हुई थी। 

सप्तर्षि संवत् :  5101 

  सप्तऋषि संवत 3076 ईसा पूर्व से आरम्भ होता है। महाभारत काल तक इस संवत् का प्रयोग होता था। वर्तमान में कश्मीर में सप्तर्षि संवत् को 'लौकिक संवत्' कहते हैं और जम्मू व हिमाचल प्रदेश में 'शास्त्र संवत्' के नाम से जानते है


विक्रम सम्वत ( आधुनिक भारतीय साल ) :- 2081


 ईशा मसीह वर्ष अंग्रेजी सा ) :- 2024
 ( नोट : अंग्रेजी कलेंडर पोप ग्रेगरी XIII द्वारा सन 1577-1582 में बनाया गया )

शक सम्वत (भारतीय सरकारी साल ) :- 1946


महीनों के नाम
1. चैत्र (चैत ) शुक्लपक्ष (अर्धमास ) , 
{चैत्र मास का शुक्लपक्ष (अर्धमास) हमारा प्रथम मास होता है,  चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा (एकम) को हम नववर्ष मानते हैं }
बैसाख (वैशाख  
ज्येष्ठ (जेठ) , 
 4 आषाढ़ (साढ़) , 
 5 श्रावण (सावन) , 
श्रावण अधिमास
श्राव(सावन)
6 भाद्रपद (भादवा) ,  
 7 अश्विन (आशोज) , 
 8 कार्तिक (कातक) , 
मार्गशीर्ष (मंगसिर /गहन ) 
 10  पौष (पौह) , 
11. माघ (माह) ,  
12. फाल्गुन (फागण 
13. चैत्र (चैत ) कृष्णपक्ष  (अर्धमास ) 
(चैत्र मास का कृष्णपक्ष (अर्धमास) हमारा अंतिम मास होता है)



हमारे मासों (महीनों ) के नाम नक्षत्रों के नामों पर रखे गये हैं।
जिस मास की पूर्णिमा को चन्द्रमा जिस नक्षत्र पर होता है उसी नक्षत्र के नाम पर उस मास का नाम है
1. चित्रा नक्षत्र से चैत्र मास
2. विशाखा नक्षत्र से वैशाख मास
3. ज्येष्ठा नक्षत्र से ज्येष्ठ मास
4. पूर्वाषाढा नक्षत्र / उत्तराषाढा नक्षत्र  से आषाढ़
5. श्रावण नक्षत्र से श्रावण मास 
6. पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र  / उत्तराभाद्रपद नक्षत्र  से भाद्रपद 
7. अश्विनी नक्षत्र से अश्विन मास 
8. कृत्तिका नक्षत्र से कार्तिक मास 
9. मृगशिरा नक्षत्र से मार्गशीर्ष मास 
10. पुष्य नक्षत्र से पौष मास 
11. माघा नक्षत्र से माघ मास
12. पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र / उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र  से फाल्गुन मास

विदेशियों ने भारत के ज्ञान को चुरा कर,  अपने नाम करना चाहा  जिसे आप नीचे  दिया गया विवरण पढ़कर खुद समझ जाओगे 
विदेशियों ने भारत की नक़ल कि लेकिन नक़ल में  अक्ल की जरुरत होती है 

1. जनवरी महीने का नाम रोमन के देवता 'जेनस' के नाम पर रखा गया | हम नक्षत्रों के नाम पर नामकरण करें तो भी पिछड़े और अंधविश्वासी और वो देवी देवताओं के नाम पर नामकरण करें तो ज्ञानी ..... उन्हें तब तक शायद नक्षत्रों का ज्ञान भी नहीं था

2. फरवरी महीने का नाम रोम की देवी 'फेब्रुएरिया' के नाम पर रखा गया | हम नक्षत्रों के नाम पर नामकरण करें तो भी पिछड़े और अंधविश्वासी और वो देवी देवताओं के नाम पर नामकरण करें तो ज्ञानी ..... उन्हें तब तक शायद नक्षत्रों का ज्ञान भी नहीं था

3. मार्च महीने का नाम रोमन देवता 'मार्स' के नाम पर रखा गया | हम नक्षत्रों के नाम पर नामकरण करें तो भी पिछड़े और अंधविश्वासी और वो देवी देवताओं के नाम पर नामकरण करें तो ज्ञानी ..... उन्हें तब तक शायद नक्षत्रों का ज्ञान भी नहीं था

4. अप्रैल महीने का नाम लेटिन शब्द 'ऐपेरायर' से बना है, जिसका मतलब है 'कलियों का खिलना'ऐसा लगता है उन्हें ऋतु (महीनों का समूह) और महीने का अंतर् तक नहीं पता था | रोम में इस महीने में बसंत मौसम की शुरुआत होती है जिसमें फूल और कलियां खिलती हैं , वो हमारी बसन्त ऋतु को नहीं मानते क्योकि हम तो पिछड़े और अंधविश्वासी हैं उनकी नज़र में और हमारे कुछ ज्यादा पढ़े लिखे लोगो की नज़र में भी 

5. मई महीने का नाम रोमन के देवता 'मरकरी' की माता 'माइया' के नाम पर रखा गया |  हम नक्षत्रों के नाम पर नामकरण करें तो भी पिछड़े और अंधविश्वासी और वो देवी देवताओं के नाम पर नामकरण करें तो ज्ञानी ..... उन्हें तब तक शायद नक्षत्रों का ज्ञान भी नहीं था

6. जून महीने का नाम रोम के सबसे बड़े देवता 'जीयस' की पत्नी 'जूनो' के नाम पर रखा गया | हम नक्षत्रों के नाम पर नामकरण करें तो भी पिछड़े और अंधविश्वासी और वो देवी देवताओं के नाम पर नामकरण करें तो ज्ञानी ..... उन्हें तब तक शायद नक्षत्रों का ज्ञान भी नहीं था

7. जुलाई महीने का नाम रोमन साम्राज्य के शासक 'जुलियस सिजर' के नाम पर रखा गया क्योकि जुलियस का जन्म और मृत्यु इसी महीने में हुई थी , जरा सोचो की "जूलियस सीजर" से पहले इस महीने का नाम क्या होगा ? 

8. अगस्त महीने का नाम 'सैंट आगस्ट सिजर' के नाम पर रखा गया,  जरा सोचो की 'सैंट आगस्ट सिजर से पहले इस महीने का नाम क्या होगा ? 

यहाँ तक तो उन्होंने अपने लोगो और देवी देवताओ के नाम पर, हमारे महीनो के नाम छाप लिए .... अब आगे के महीने देखो 

9. सितंबर महीने का नाम लेटिन शब्द 'सेप्टेम' से बना है, सेप्टै लेटिन शब्द है जिसका अर्थ है सात यानि भारतीय महीनो के हिसाब से अश्वनी मास, साल का सातवां महीना होता है रोम में सितंबर को सप्टेम्बर कहा जाता है। ग्रेगोरियन कलेण्डर के हिसाब से सितम्बर नौवा महीना होता है , अब आप सोचो की नकल तो की पर अक्ल नहीं लगाई , भला नौवे महीने को उन्होंने सातवाँ क्यों माना ?

10. अक्टूबर महीने का नाम लेटिन के 'आक्टो' शब्द से लिया गया , 'आक्टो' लेटिन शब्द है जिसका अर्थ है आठ यानि भारतीय महीनो के हिसाब से कार्तिक मास, साल का आठवां महीना होता है , ग्रेगोरियन कलेण्डर के हिसाब से अक्टूबर दसवाँ महीना होता है , अब आप सोचो की नकल तो की पर अक्ल नहीं लगाई , भला दसवेँ महीने को उन्होंने आठवाँ क्यों माना ?

11. नवंबर महीने का नाम लेटिन के 'नवम' शब्द से लिया गया , 'नवम' शब्द का अर्थ है नौ यानि भारतीय महीनो के हिसाब से मार्गशीष मास, साल का नौवा महीना होता है , ग्रेगोरियन कलेण्डर के हिसाब से नवम्बर ग्यारहवां महीना होता है , अब आप सोचो की नकल तो की पर अक्ल नहीं लगाई , भला ग्यारहवें महीने को उन्होंने नौवा क्यों माना ?
 
12. दिसंबर महीने का नाम लेटिन के 'डेसम' शब्द से लिया गया , ''डेसम' शब्द का अर्थ है दस यानि भारतीय महीनो के हिसाब से पौष मास, साल का दसवाँ महीना होता है ग्रेगोरियन कलेण्डर के हिसाब से दिसम्बर बारहवाँ महीना होता है , अब आप सोचो की नकल तो की पर अक्ल नहीं लगाई , भला बारहवें महीने को उन्होंने दसवाँ  क्यों माना ?

क्या अब भी आप ये मानते है कि भारत विश्व गुरु नहीं था ?

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राशि
मेष 🐐  (चू, चे, चो, ला, ली, लू, ले, लो, अ)
वृष 🐂  (ई, ऊ, ए, ओ, वा, वी ,वु , वे, वो)
मिथुन 👫  (का, की, कू, घ, ङ, छ, के, को, हा)
कर्क 🦀  (ही, हू, हे, हो, डा, डी, डू, डे, डो)
सिंह 🦁  (मा, मी, मू, मे, मो, टा, टी, टू, टे)
कन्या 👩  (टो, पा, पी, पू, ष, ण, ठ, पे, पो)
तुला ⚖️ ( रा, री, रू, रे, रो, ता, ती, तू, ते)
वृश्चिक 🦂  (तो, ना, नी, नू, ने, नो, या, यी, यू)
धनु 🏹  (ये, यो, भा, भी, भू, ध, फा, ढा, भे)
मकर 🐊  (भो, जा, जी, खी, खू, खा, खो, गा, गी)
कुंभ 🍯  (गू, गे, गो, सा, सी, सू, से, सो, दा)
मीन 🐳  (दी, दू, थ, झ, ञ, दे, दो, चा, ची)
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इन चार रात्रियों को जागरण करना चाहिए अर्थात सोना नहीं चाहिए , भजन कीर्तन प्रभु गुणगान पूरी रात करना चाहिए , 
जन्माष्टमी , दीपावली , महाशिवरात्रि ,  होली (दहन)


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सूर्यग्रहण

उपछाया / कंकणाकृति सूर्यग्रहण

नोट : यह सूर्यग्रहण भारत में दृश्य मान नहीं होगा भारत में इस सूर्यग्रहण का कोई भी प्रभाव नहीं होगा और ना ही इसका सूतक काल माना जाएगा
प्राचीन परम्परा के अनुसार ग्रहण के समय क्या करें ?
ग्रहण के समय रुद्राक्ष की माला धारण करने से पाप नाश हो जाते हैं
ग्रहण लगने के पहले खान - पान ऐसा करिए कि आपको बाथरूम में ना जाना पड़े
ग्रहण के समय हज़ार काम छोड़ कर मौन और जप करिए
ग्रहण के समय दीक्षा अथवा दीक्षा लिए हुए मंत्र का जप करने से सिद्धि हो जाती है
ग्रहण के समय भगवान का चिंतन, जप, ध्यान करने पर उसका लाख गुना फल मिलता है
ग्रहण के समय अपने घर की चीज़ों में कुश, तुलसी के पत्ते अथवा तिल डाल देने चाहिए
प्राचीन परम्परा के अनुसार ग्रहण के समय क्या न करें ?
ग्रहण के समय मूत्र त्याग नहीं करना चाहिए, दरिद्रता आती है
ग्रहण के समय शौच नहीं जाना चाहिए, वर्ना पेट में कृमि होने लगते हैं
ग्रहण के समय सोने से रोग बढ़ते हैं
ग्रहण के समय धोखाधड़ी और ठगाई करने से सर्पयोनि मिलती है
ग्रहण के समय सम्भोग करने से सुअर की योनि मिलती है
ग्रहण के समय जीव-जंतु या किसी की हत्या हो जाय तो नारकीय योनि में जाना पड़ता है
ग्रहण के समय भोजन व मालिश करने वाले को कुष्ट रोग हो जाता है
ग्रहण के समय पत्ते, तिनके, लकड़ी, फूल आदि नहीं तोड़ने चाहिए
ग्रहण के समय दूसरे का अन्न खाने से 12 साल का किया हुआ जप, तप, दान स्वाहा हो जाता है- स्कन्द पुराण

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दीपावली
दीपावली की संध्या को तुलसी जी के निकट दिया जलायें, लक्ष्मीजी को प्रसन्न करने में मदद मिलती है
दिवाली के दिन अपने घर के बाहर सरसों के तेल का दिया जला देना, इससे गृहलक्ष्मी बढ़ती है
दीपावली की रात का जप हज़ार गुना फलदाई होता है
दीपावली की रात का जप हज़ार गुना फलदाई होता है
दिवाली के दिन अपने घर के मुख्य द्वार पर नीम व अशोक (आसोपाल ) के पत्तों का तोरण लगा देना , इस पर से पसार होने वाले की रोग प्रतिकारक शक्ति बढेगी
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मास एवं उनका महत्व

कार्तिक मास

स्नानं च दीपदानं च तुलसीवनपालनम् । भूमिशय्या ब्रह्मचर्य्यं तथा द्विदलवर्जनम् । कार्तिक मास में सूर्योदय से पहले स्नान तीर्थ स्नान के समान होता है , जप :- "ॐ नमो नारायणाय"

स्कंद पुराण में लिखा है : ‘कार्तिक मास के समान कोई और मास नहीं हैं, सत्ययुग के समान कोई युग नहीं है, वेदों के समान कोई शास्त्र नहीं है और गंगाजी के समान दूसरा कोई तीर्थ नहीं है ’ – ( वैष्णव खण्ड, का.मा. : १.३६-३७)

*विष्णुसंकीर्तनं सत्यं पुराणश्रवणं तथा । कार्तिके मासि कुर्वंति जीवन्मुक्तास्त एव हि ” - (स्कन्दपुराण, वैष्णवखण्ड, कार्तिकमासमाहात्म्यम, अध्याय 03)

"हरिजागरणं प्रातःस्नानं तुलसिसेवनम् । उद्यापनं दीपदानं व्रतान्येतानि कार्तिके" - (पद्मपुराण, उत्तरखण्ड, अध्याय 115)

महापुण्यदायक तथा मोक्षदायक कार्तिक के मुख्य नियमों में सबसे प्रमुख नियम है : दीपदान । दीपदान का अर्थ होता है आस्था के साथ दीपक प्रज्वलित करना। कार्तिक में प्रत्येक दिन दीपदान जरूर करना चाहिए। पद्मपुराण उत्तरखंड, अध्याय 121 में कार्तिक में दीपदान की तुलना अश्वमेघ यज्ञ से की है सूर्यग्रहे कुरुक्षेत्रे नर्मदायां शशिग्रहे ।। तुलादानस्य यत्पुण्यं तदत्र दीपदानतः । अर्थात कुरुक्षेत्र में सूर्यग्रहण के समय और नर्मदा में चन्द्रग्रहण के समय अपने वजन के बराबर स्वर्ण के तुलादान करने का जो पुण्य है वह केवल दीपदान से मिल जाता है। कार्तिक में प्रतिदिन दो दीपक जरूर जलाएं । एक गाय के घी का श्रीहरि नारायण के समक्ष तथा दूसरा तेल का शिवलिंग के समक्ष ।

दातव्यो न तु भूमौ कदाचन।* *सर्वसहा वसुमती सहते न त्विदं द्वयम्।।
अकार्यपादघातं च दीपतापं तथैव च। तस्माद् यथा तु पृथ्वी तापं नाप्नोति वै तथा।। - कालिका पुराण
( दीपक रखने से पहले उसको चावल अथवा गेहूं अथवा सप्तधान्य का आसन दें। दीपक को भूल कर भी सीधा पृथ्वी पर न रखें)


 मार्गशीर्ष (मंगसिर) 
मार्गशीर्ष मास में विश्वदेवताओं का पूजन किया जाता है कि जो गुजर गये उनके आत्मा शांति हेतु ताकि उनको शांति मिले
“पूर्णे वर्षसहस्रे तु तीर्थराजे तु यत्फलम् । तत्फलं लभते पुत्र सहोमासे मधोः पुरे ।।” - स्कन्दपुराण
( तीर्थराज प्रयाग में एक हजार वर्ष तक निवास करने से जो फल प्राप्त होता है, वह मथुरापुरी में केवल अगहन (मार्गशीर्ष) में निवास करने से मिल जाता है )
“मार्गशीर्षे ऽन्नदस्यैव सर्वमिष्टफलं भवेत् ॥ पापक्षयं चेष्टसिद्धिं चारोग्यं धर्ममेव च॥” - विश्वेश्वर संहिता , शिवपुराण
( मार्गशीर्ष मास में अन्न का दान करने वाले मनुष्यों को ही सम्पूर्ण अभीष्ट फलों की प्राप्ति हो जाती है | मार्गशीर्ष मास में अन्न का दान करने वाले मनुष्य के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं )
“मार्गशीर्षं तु वै मासमेकभक्तेन यः क्षिपेत्। भोजयेच्च द्विजाञ्शक्त्या स मुच्येद्व्याधिकिल्बिषैः।।
सर्वकल्याणसम्पूर्णः सर्वौषधिसमन्वितः। कृषिभागी बहुधनो बहुधान्यश्च जायते।।” - अध्याय 106 , अनुशासन पर्व , महाभारत
(जो मार्गशीर्ष मास को एक समय भोजन करके बिताता है और अपनी शक्ति के अनुसार ब्राह्माण को भोजन कराता है, वह रोग और पापों से मुक्त हो जाता है । वह सब प्रकार के कल्याणमय साधनों से सम्पन्न होता है। मार्गशीर्ष मास में उपवास करने से मनुष्य दूसरे जन्म में रोग रहित और बलवान होता है। उसके पास खेती-बारी की सुविधा रहती है तथा वह बहुत धन-धान्य से सम्पन्न होता है )
“मासानां मार्गशीर्षोऽहं नक्षत्राणां तथाभिजित्” - श्रीकृष्ण , श्रीमद्भागवतगीता
(मैं महीनों में मार्गशीर्ष और नक्षत्रों में अभिजित् हूँ)
“मार्गशीर्षोऽधिकस्तस्मात्सर्वदा च मम प्रियः ।।
उषस्युत्थाय यो मर्त्यः स्नानं विधिवदाचरेत् ।।
तुष्टोऽहं तस्य यच्छामि स्वात्मानमपि पुत्रक ।।” - वैष्णवखण्ड ,स्कन्दपुराण
( मार्गशीर्ष मास मुझे सदैव प्रिय है। जो मनुष्य प्रातःकाल उठकर मार्गशीर्ष में विधिपूर्वक स्नान करता है, उस पर संतुष्ट होकर मैं अपने आपको भी उसे समर्पित कर देता हूँ)
मार्गशीर्ष में सप्तमी, अष्टमी मासशून्य तिथियाँ हैं। मासशून्य तिथियों में मंगलकार्य करने से वंश तथा धन का नाश होता है।

                                                  संकलनकर्ता  - रमेश खोला ,  10.10.2022

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वार एवं उनका महत्व
रविवार : 
रविवार के दिन बिल्ववृक्ष का पूजन करना चाहिए। इससे ब्रह्महत्या आदि महापाप भी नष्ट हो जाते हैं- स्कंद पुराण
रविवार के दिन मसूर की दाल, अदरक और लाल रंग का साग नहीं खाना चाहिए - ब्रह्मवैवर्त पुराण (श्रीकृष्ण खंडः 75.90)
रविवार के दिन काँसे के पात्र में भोजन नहीं करना चाहिए - ब्रह्मवैवर्त पुराण (श्रीकृष्ण खंडः 75)
रविवार के दिन स्त्री-सहवास तथा तिल का तेल खाना और लगाना निषिद्ध है - ब्रह्मवैवर्त पुराण ( ब्रह्म खंडः 27.29-38)
                                                          संकलनकर्ता   - रमेश खोला ,  21.08.2022

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तिथि एवं उनका महत्व
 प्रतिपदा (एकम ) : धार्मिक अनुष्ठान के लिए उत्तम तिथि ( अधिपति देव : अग्नि देव )
“ऊँ महाज्वालाय विद्महे अग्नि मध्याय धीमहि ।
तन्नो: अग्नि प्रचोदयात ।।”

द्वितीया ( दौज ) : नव निर्माण शुरू  करने के लिए उत्तम तिथि ( अधिपति देव : ब्रह्मा जी )
दौज को बृहती (छोटा बैगन या कटेहरी) खाना निषिद्ध है (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)
ॐ चतुर्मुखाय विद्महे, कमण्डलु धाराय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात्॥ 

तृतीया ( तीज ) : मुंडन आदि कार्यों के लिए उत्तम तिथि ( अधिपति देवी : माता गौरी )
 या देवी सर्वभू‍तेषु मां गौरी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

चतुर्थी ( चौथ ) : बाधा दूर करने के लिए उत्तम तिथि ( अधिपति देव : श्री गणेश जी और यमदेव )
वक्रतुण्ड महाकाय सुर्यकोटि समप्रभ निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा
धर्मराज नमस्तुभ्यं नमस्ते यमुनाग्रज।

पंचमी ( पांचे ) : सर्जरी / चिकित्सा आदि के लिए उत्तम तिथि ( अधिपति देव : नागदेव )

 नमोस्तु सर्पेभ्यो ये के च पृथ्वीमनु। येऽ अंतरिक्षे ये दिवितेभ्य: सर्पेभ्यो नम:।।


षष्टी ( छठ ) : उत्सव मनाने के लिए उत्तम तिथि ( अधिपति देव : कार्तिकेय )
ॐ तत्पुरुषाय विधमहे: महा सैन्या धीमहि तन्नो स्कंदा प्रचोदयात'
षष्ठी को नीम की पत्ती, फल या दातुन मुँह में डालने से नीच योनियों की प्राप्ति होती है- (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)

सप्तमी ( सातै) : खरीददारी / यात्रा शुरू करने के लिए उत्तम तिथि ( अधिपति देव : सूर्य देव )
ॐ हृां मित्राय नम:
ॐ हृीं रवये नम:
 ॐ हूं सूर्याय नम:
ॐ ह्रां भानवे नम:
ॐ हृों खगाय नम:
ॐ हृ: पूषणे नम:
ॐ ह्रां हिरण्यगर्भाय नमः
ॐ मरीचये नमः
ॐ आदित्याय नमः
ॐ सवित्रे नमः
ॐ अर्काय नमः
ॐ भास्कराय नमः

अष्टमी ( आठै ) : जीत दिलाने के लिए उत्तम तिथि , केवल कृष्ण पक्ष में पूजा लाभ कारी होगी , शुक्ल पक्ष में वर्जित ( अधिपति देव : रूद्रदेव )
ॐ नमो भगवते रुद्राय।।

नवमी ( नौमी ) : युद्ध शुरुआत के लिए उत्तम तिथि ( अधिपति देवी  : अम्बिका )
ह्रीं श्री अम्बिकायै नम: ।
नवमी को लौकी खाना गोमांस के समान त्याज्य है - ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34

दशमी : धार्मिक / आध्यात्मिक कार्यों के लिए उत्तम तिथि ( अधिपति देव : धर्मराज )
ऊँ धर्मराजाय नम:

एकादशी ( ग्यारस ) : पूजा / व्रत / धर्मस्थान यात्रा / दान आदि के लिए उत्तम तिथि ( अधिपति देव : महादेव )
एकादशी व्रत के पुण्य के समान और कोई पुण्य नहीं है । जो पुण्य गौ-दान सुवर्ण-दान, सूर्यग्रहण में दान, अश्वमेघ यज्ञ से होता है, उससे अधिक पुण्य एकादशी के व्रत से होता है | एकादशी के व्रत से कीर्ति बढ़ती है, श्रद्धा-भक्ति बढ़ती है, धन-धान्य, पुत्रादि की वृद्धि होती है | एकादशी करनेवालों के पितर नीच योनि से मुक्त होते हैं ।
।।ॐ नम: शिवाय।।
 ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान्मृ त्योर्मुक्षीय मामृतात्

द्वादशी : धार्मिक अनुष्ठान के लिए उत्तम तिथि ( अधिपति देव : भगवान विष्णु )
सच्चिदानंदरूपाय विश्वोत्पत्यादिहेतवे |
तापत्रयविनाशाय श्रीकृष्णाय वयं नुमः ||
ॐ नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।।

एकोऽपि कृष्णस्य कृतः प्रणामो दशाश्वमेधावभृथेन तुल्यः ।
दशाश्वमेधी पुनरेति जन्म कृष्णप्रणामी न पुनर्भवाय ॥
- महाभारत, शान्तिपर्व॰ ४७/९२
एको हि कृष्णस्य कृतः प्रणामो दशाश्वमेधावभृथेन तुल्यः ।।
दशाश्वमेधी पुनरेति जन्म कृष्णप्रणामी न पुनर्भवाय ।। ६-३ ।।
- नारदपुराण , उत्तरार्ध, ६/३
एकोऽपि गोविन्दकृतः प्रणामः शताश्वमेधावभृथेन तुल्यः ।।
यज्ञस्य कर्त्ता पुनरेति जन्म हरेः प्रणामो न पुनर्भवाय ।।
- स्कन्दपुराण, वैष्णवखण्ड
अर्थात ... भगवान्‌ श्रीकृष्ण की शरण में जाना तो. दस अश्वमेघ यज्ञों के अन्त में किये गये दिव्य स्नान के समान फलदायक होता है। दस अश्वमेघ करने वाला तो संसार के बन्धनों (आवागमन) से मुक्त भी नहीं होता है, परंतु श्री कृष्ण की शरण में जाने वाला संसार के बन्धनों से मुक्त हो जाता है ।

त्रयोदशी ( तेरस) : प्रेम / प्यार / मित्रता के लिए उत्तम तिथि ( अधिपति देव : कामदेव )
'ऊँ कामदेवाय विद्महे, रति प्रियायै धीमहि, तन्नो अनंग प्रचोदयात्। '

चतुर्दशी ( चौदस ) प्रेत बाधा दूर / सिद्धि प्राप्त करने के लिए उत्तम तिथि ( अधिपति देवी : काली मैय्या )
”ॐ क्रीं कालिकायै नमः”

अमावस्या ( मावस ) : पितृ पूजन / पिंड दान / दान धर्म आदि के लिए उत्तम तिथि ( अधिपति देव : पितृदेव )
ॐ पितृगणाय विद्महे जगत धारिणी धीमहि तन्नो पितृो प्रचोदया

पूर्णिमा ( पूर्णमासी ) : व्रत /  यज्ञ / कथा आदि के लिए उत्तम तिथि , पूर्णिमा और व्रत के दिन स्त्री-सहवास तथा तिल का तेल खाना और लगाना निषिद्ध है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-38) ( अधिपति देव  : चन्द्रमा )
ॐ सों सोमाय नम:।
                                                         
                                                                  ~~~~~~~~~~~~~~~~~~

महत्वपूर्ण बातें

क्या आप जानते है ? पांडवों ने ये 5 गांव कौरवो से मांगे थे - पांडुप्रस्थ (पानीपत), स्वर्णप्रस्थ (सोनीपत) , व्याघ्रप्रस्थ (बागपत), वारणावर्त (बरनावा , हिण्डन/, यहाँ लाक्षागृह बनाया था ) और वरुपत (तिलपत , फरीदाबाद)

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क्या आप जानते है ? , ईशान कोण में तुलसी का पौधा लगाने से तथा पूजा के स्थान पर गंगाजल रखने से घर में लक्ष्मी की वृद्धि होती है | घर के अंदर, लक्ष्मी जी बैठी हों ऐसा फोटो रखना चाहिए और दुकान के अंदर, लक्ष्मी जी खड़ी हों ऐसा फोटो रखना चाहिए

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।। अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता । अस बर दीन्ह जानकी माता ।। - तुलसीदास जी (श्री हनुमान चालीसा)

आठ सिद्धियाँ इस प्रकार हैं :- (1) अणिमा (2) महिमा (3) गरिमा (4) लघिमा (5) प्राप्ति (6) प्राकाम्य (7) वशित्व (8) ईशित्व ।

आठ सिद्धियों के प्राप्ति फल के बारे में जानने के लिए नीचे क्लिक करें 

अष्ठ सिद्धि प्राप्ति फल

नौ निधियां इस प्रकार है :- (1) पद्म निधि (2) महाप निधि (3) मकर निधि (4) कच्छप निधि (5) मुकुन्द निधि (6) कुन्द (नन्द) निधि (7) नील निधि (8) शंख निधि (9) मिश्र निधि

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10 इन्द्रियां एवं उनके स्वामी 

पांच ज्ञानेंद्रियां एवं उनके देवता चक्षु (नेत्र) : भास्कर (सूर्य ) कर्ण (कान) : आकाश (दिशा ) नासिका (नाक) : पृथ्वी ( अश्वनी कुमार ) रसना (जिह्वा ) : वरुण (जल ) त्वक (चर्म/खाल/त्वचा ) : वायु ( पवन )

पांच कर्मेंद्रियां एवं उनके देवता हस्त (हाथ ) : इंद्र चरण : उपेंद्र ( विष्णु ) वाणी (मुँह ) : अग्नि उपस्थेन्द्रिय / लिंग (लघुशंका इंद्री ) : प्रजापति पायु /गुदा (निव्रतेंद्री ) : यमराज (मृत्यु)

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संकलनकर्ता  रमेश खोला ,  06.05.2022

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