1884 में बनी भारतीय दंड संहिता के अनुसार गोवा अब तक भारत का हिस्सा नहीं बन पाया :
बेशक 40 साल पहले मात्र 36 घंटे के ऑपरेशन-विजय से गोवा को भारतीय सेना ने जीत लिया और विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मुकदमों के बाद 24 वर्ष पहले यह भारत का हिस्सा बन उसे वर्ष 1860 में बनी भारतीय दंड संहिता आज भी विदेशी भूमि ही मानती है। यह अलग बात है कि आज गोवा में जाने के लिए कोई पासपोर्ट नहीं मांगता, वहां भारतीय मुद्रा प्रचलन में है और भारतीय निर्वाचन आयोग ही वहां पर चुनाव करवाता है। चकरा गए न भारतीय दंड संहिता की धारा 108 को थोड़ा ध्यान से पढ़ लीजिये तो आपको यकीन आ जाएगा। दरअसल विदेश में किसी व्यक्ति द्वारा किसी दूसरे व्यक्ति को अपराध के लिए उकसाने की परिभाषा भारतीय दंड संहिता की धारा 108 में दी हुई है और धारा 109 में इस अपराध की सजा के बारे में विस्तार से बताया गया है। धारा 107 में इस अपराध की परिभाषा दी हुई है। इस धारा में उतनी ही सजा होती है, जितनी सजा संबंधित अपराध करने में होती है। भारतीय दंड संहिता की धाराओं के वर्ष 2011 के अंक में भी इस धारा को समझाने के लिए जो उदाहरण दिया गया है, वह गोवा को आज भी विदेशी जमीन मानता है। इसमें उदाहरण दिया गया है कि यदि ए भारतीय व्यक्ति किसी बी विदेशी व्यक्ति को गोवा में किसी अपराध के लिए उकसाता है उसके खिलाफ भारत की किसी भी अदालत में मुकदमा चलाया जा सकता है। इसका सीधा-सीधा मतलब यह है कि भारतीय दंड संहिता आज भी गोवा को विदेश मानती है। हालांकि गोवा में यदि इस समय कोई व्यक्ति अपराध के लिए किसी को उकसाता है तो उसके खिलाफ गोवा में ही मुकदमा चलता है। हमारे लिए गोवा आज भी है विदेश
No comments:
Post a Comment
आप, प्रतिक्रिया (Feedback) जरूर दे, ताकि कुछ कमी/गलती होने पर वांछित सुधार किया जा सके और पोस्ट की गयी सामग्री आपके लिए उपयोगी हो तो मुझे आपके लिए और अच्छा करने के लिए प्रोत्साहन मिल सके :- आपका अपना साथी - रमेश खोला