20.09.2017 DAINIK JAGRAN NEWS CLIP
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फैजाबाद (यूपी).गुमनामी बाबा के आखिरी बक्से से नेताजी सुभाष चंद्र बोस की फैमिली फोटोज मिली हैं। साथ ही तीन घड़ियां- रोलेक्स, ओमेगा और क्रोनो मीटर सहित तीन सिगार केश मिले हैं। एक फोटो में बोस के पिता जानकी नाथ, मां प्रभावती देवी, भाई-बहन और पोते-पोती नजर आ रहे हैं। हालांकि, क्या गुमनामी बाबा ही नेताजी थे, इस बात को लेकर मिस्ट्री अब भी कायम है।
बोस की फैमिली फोटोज में कौन-कौन...
- फोटो में सुभाष चंद्र बोस की फैमिली के 22 लोग हैं।
- ऊपर की लाइन में (बाएं से दाएं) सुधीर चंद्र बोस, शरत चंद्र बोस, सुनील चंद्र और सुभाष चंद्र बोस हैं।
- बीच की लाइन में (बीच में बैठ हुए) नेताजी के पिता जानकी नाथ बोस, मां प्रभावती देवी और तीन बहनें हैं।
- फोटो में नीचे की लाइन में जानकी नाथ बोस के पोते-पोतियां हैं। इसके अलावा भी कई अन्य फैमिली फोटोज मिली हैं।
- गुमनामी बाबा के मकान मालिक के मुताबिक, 4 फरवरी, 1986 को नेताजी के भाई सुरेश चंद्र बोस की बेटी ललिता यहां आई थीं। उन्होंने ही फोटो में लोगों की पहचान की थी।
- आखिरी बक्से से आजाद हिंद फौज (आईएनए) के कमांडर पबित्र मोहन राय, सुनील दास गुप्ता या सुनील कृष्ण गुप्ता के 23 जनवरी या दुर्गापूजा में आने को लेकर लेटर और टेलीग्राम भी मिले हैं।
- पबित्र मोहन राय ने एक पत्र में गुमनामी बाबा को कभी स्वामी जी तो कभी भगवन जी कहा है।
क्या उठ रहे सवाल?
- सवाल यह है कि अगर गुमनामी बाबा नेताजी सुभाष चंद्र बोस नहीं थे तो कौन थे?
- अगर वे गुमनामी बाबा या कोई और थे तो उनके बक्से में बोस की फैमिली फोटोज क्यों थीं?
क्या कहते हैं गुमनामी बाबा के मकान मालिक?
- गुमनामी बाबा ने राम भवन में जिंदगी के अंतिम तीन साल (1982-85) गुजारे। राम भवन के मालिक शक्ति सिंह हैं।
- सिंह के मुताबिक, हाईकोर्ट का प्रदेश सरकार को ऑर्डर है कि रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में एक टीम बनाई जाए, जो गुमनामी बाबा के बक्से में मिली चीजों की जांच करेगी।
- प्रशासनिक कमेटी की जांच के तीन दिन बाद टेक्निकल कमेटी सामान की जांच करेगी।
पहले के बक्सों से क्या मिला?
- गोल फ्रेम का एक चश्मा मिला था। वह ठीक वैसा ही है, जैसा बोस पहनते थे।
- एक रोलेक्स घड़ी मिली। ऐसी घड़ी बोस अपनी जेब में रखते थे।
- कुछ लेटर मिले, जो नेताजी की फैमिली मेंबर ने लिखे थे। न्यूज पेपर्स की कुछ कटिंग्स मिलीं, जिनमें बोस से जुड़ी खबरें हैं।
- आजाद हिंद फौज की यूनिफॉर्म भी मिली।
- सिगरेट, पाइप, कालीजी की फ्रेम की गई तस्वीर और रुद्राक्ष की कुछ मालाएं।
- एक झोले में बांग्ला और अंग्रेजी में लिखी 8-10 लिटरेचर की किताबें मिलीं। मंत्र जाप की कुछ मालाएं भी थीं।
पब्लिक किए जा सकते हैं सामान?
- सामान को पब्लिक करने के लिए नेताजी की भतीजी ललिता बोस और नेताजी सुभाष चंद्र बोस मंच ने दो अलग-अलग रिट दायर की थी।
- इस पर सुनवाई करते हुए 31 जनवरी, 2013 को हाईकोर्ट ने यूपी सरकार को ऑर्डर दिया था कि गुमनामी बाबा के सामान को म्यूजियम में रखा जाए, ताकि आम लोग उन्हें देख सकें।
- हाल में ही मोदी सरकार ने नेताजी की फाइलें पब्लिक की हैं। इसके बाद उनकी फैमिली ने यूपी के सीएम अखिलेश यादव से मुलाकात की थी।
- बोस की फैमिली ने कोर्ट के ऑर्डर के तहत सीएम से गुमनामी बाबा के सामानों को पब्लिक करने की गुजारिश की थी। इसके बाद ही यह प्रॉसेस शुरू हुई।
- फोटो में सुभाष चंद्र बोस की फैमिली के 22 लोग हैं।
- ऊपर की लाइन में (बाएं से दाएं) सुधीर चंद्र बोस, शरत चंद्र बोस, सुनील चंद्र और सुभाष चंद्र बोस हैं।
- बीच की लाइन में (बीच में बैठ हुए) नेताजी के पिता जानकी नाथ बोस, मां प्रभावती देवी और तीन बहनें हैं।
- फोटो में नीचे की लाइन में जानकी नाथ बोस के पोते-पोतियां हैं। इसके अलावा भी कई अन्य फैमिली फोटोज मिली हैं।
- गुमनामी बाबा के मकान मालिक के मुताबिक, 4 फरवरी, 1986 को नेताजी के भाई सुरेश चंद्र बोस की बेटी ललिता यहां आई थीं। उन्होंने ही फोटो में लोगों की पहचान की थी।
- आखिरी बक्से से आजाद हिंद फौज (आईएनए) के कमांडर पबित्र मोहन राय, सुनील दास गुप्ता या सुनील कृष्ण गुप्ता के 23 जनवरी या दुर्गापूजा में आने को लेकर लेटर और टेलीग्राम भी मिले हैं।
- पबित्र मोहन राय ने एक पत्र में गुमनामी बाबा को कभी स्वामी जी तो कभी भगवन जी कहा है।
क्या उठ रहे सवाल?
- सवाल यह है कि अगर गुमनामी बाबा नेताजी सुभाष चंद्र बोस नहीं थे तो कौन थे?
- अगर वे गुमनामी बाबा या कोई और थे तो उनके बक्से में बोस की फैमिली फोटोज क्यों थीं?
क्या कहते हैं गुमनामी बाबा के मकान मालिक?
- गुमनामी बाबा ने राम भवन में जिंदगी के अंतिम तीन साल (1982-85) गुजारे। राम भवन के मालिक शक्ति सिंह हैं।
- सिंह के मुताबिक, हाईकोर्ट का प्रदेश सरकार को ऑर्डर है कि रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में एक टीम बनाई जाए, जो गुमनामी बाबा के बक्से में मिली चीजों की जांच करेगी।
- प्रशासनिक कमेटी की जांच के तीन दिन बाद टेक्निकल कमेटी सामान की जांच करेगी।
पहले के बक्सों से क्या मिला?
- गोल फ्रेम का एक चश्मा मिला था। वह ठीक वैसा ही है, जैसा बोस पहनते थे।
- एक रोलेक्स घड़ी मिली। ऐसी घड़ी बोस अपनी जेब में रखते थे।
- कुछ लेटर मिले, जो नेताजी की फैमिली मेंबर ने लिखे थे। न्यूज पेपर्स की कुछ कटिंग्स मिलीं, जिनमें बोस से जुड़ी खबरें हैं।
- आजाद हिंद फौज की यूनिफॉर्म भी मिली।
- सिगरेट, पाइप, कालीजी की फ्रेम की गई तस्वीर और रुद्राक्ष की कुछ मालाएं।
- एक झोले में बांग्ला और अंग्रेजी में लिखी 8-10 लिटरेचर की किताबें मिलीं। मंत्र जाप की कुछ मालाएं भी थीं।
पब्लिक किए जा सकते हैं सामान?
- सामान को पब्लिक करने के लिए नेताजी की भतीजी ललिता बोस और नेताजी सुभाष चंद्र बोस मंच ने दो अलग-अलग रिट दायर की थी।
- इस पर सुनवाई करते हुए 31 जनवरी, 2013 को हाईकोर्ट ने यूपी सरकार को ऑर्डर दिया था कि गुमनामी बाबा के सामान को म्यूजियम में रखा जाए, ताकि आम लोग उन्हें देख सकें।
- हाल में ही मोदी सरकार ने नेताजी की फाइलें पब्लिक की हैं। इसके बाद उनकी फैमिली ने यूपी के सीएम अखिलेश यादव से मुलाकात की थी।
- बोस की फैमिली ने कोर्ट के ऑर्डर के तहत सीएम से गुमनामी बाबा के सामानों को पब्लिक करने की गुजारिश की थी। इसके बाद ही यह प्रॉसेस शुरू हुई।
कौन थे गुमनामी बाबा?
- फैजाबाद जिले में एक योगी रहते थे, जिन्हें पहले भगवनजी और बाद में गुमनामी बाबा कहा जाने लगा।
- मुखर्जी कमीशन ने भी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि फैजाबाद के भगवनजी या गुमनामी बाबा और नेताजी सुभाष चंद्र बोस में काफी समानताएं थीं।
- 1945 से पहले नेताजी से मिल चुके लोगों ने गुमनामी बाबा से मिलने के बाद माना था कि वही नेताजी थे। दोनों का चेहरा काफी मिलता-जुलता था।
- रिपोर्ट में कहा गया है कि 23 जनवरी (नेताजी का जन्मदिन) और दुर्गा-पूजा के दिन कुछ फ्रीडम फाइटर, आजाद हिंद फौज के कुछ मेंबर्स और पॉलिटिशियन गुमनामी बाबा से मिलने आते थे।
- फैजाबाद जिले में एक योगी रहते थे, जिन्हें पहले भगवनजी और बाद में गुमनामी बाबा कहा जाने लगा।
- मुखर्जी कमीशन ने भी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि फैजाबाद के भगवनजी या गुमनामी बाबा और नेताजी सुभाष चंद्र बोस में काफी समानताएं थीं।
- 1945 से पहले नेताजी से मिल चुके लोगों ने गुमनामी बाबा से मिलने के बाद माना था कि वही नेताजी थे। दोनों का चेहरा काफी मिलता-जुलता था।
- रिपोर्ट में कहा गया है कि 23 जनवरी (नेताजी का जन्मदिन) और दुर्गा-पूजा के दिन कुछ फ्रीडम फाइटर, आजाद हिंद फौज के कुछ मेंबर्स और पॉलिटिशियन गुमनामी बाबा से मिलने आते थे।
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16 Mar 2016 Dainik Jagran
लखनऊ। गुमनामी बाबा उर्फ भगवन जी उर्फ साधु उर्फ अनाम संत जैसे नामों से वर्षों तक गुमनामी की जिंदगी जीने वाले गुमनामी बाबा को अपनी पहचाने छिपाने के लिए लगातार ठिकाना बदलना पड़ा। मुखर्जी आयोग के बक्से से मिले सबूत बताते हैं कि उन्होंने पहला पड़ाव नेपाल सीमा पर किसी गांव में बनाया। संभवत: यह गांव शोलापुरी था। फिर नैमिषारण्य, जो सीतापुर जिले में है। वहां से बस्ती जिले के एक गांव चले गए। अगला पड़ाव अयोध्या का लखनउवा मंदिर और अंतिम पड़ाव फैजाबाद के सिविल लाइंस स्थित राम भवन में रहा। उन्होंने सदैव अपने चेहरे को भी छिपाया।
आज फैजाबाद कोषागार के डबल लॉक से निकाले गए सबूतों में रोलेक्स रिस्ट वाच, ओमेगा रिस्ट वाच व आकर्षित करने वाली कोरोनोमीटर है। यह लाकेट घड़ी उसी तरह है जैसी गांधी जी कमर में लटकाते थे। पत्र तो बेशुमार हैं। सभी पत्र एक ही तरफ इशारा करते हैं। आजाद हिंद सेना के प्रमुख रहे पवित्र मोहन राय का पत्र गुमनामी बाबा की कुंडली के बारे में बताता है। कुंडली कहती है कि 1944-45 में कोई दुर्घटना नहीं हुई है। ज्योतिषी ने जैसा बताया था, 1945 के बाद वही हो रहा है। 1955-60 में बड़े रोग से आक्रांत होना बताया, धर्मशाला में आप बीमार पड़े। इसी पत्र में संतोष, दुलाल, विजय व बाबू सुकृत का भी उल्लेख है। आशंका है कि ये गुमनामी बाबा से गुपचुप जुड़े थे। 14 जुलाई 77 को भेजा गया बांग्ला भाषा का पत्र है, जिसमें पवित्र मोहन राय ने सपने के सहारे सोच को बयां किया है। लिखा है कि 19 जुलाई को पहुंचा, आपने कुछ विशिष्ट लोगों की जानकारी चाही है। आगे सपने का जिक्र कर बताया गया है कि समय 1930 का वर्ष का है, पितृ देव का कर्मस्थल मैमन ङ्क्षसह, जिला टांगा का कोई गांव है, जहां काली जी मूर्ति की स्थापना गयी। देखा रास्ते में सतगुरु चले आ रहे हैं, गेरुआ वस्त्र पहने हैं, महराज पूर्वी पाकिस्तान के हैं, भारत में रहने लगे हैं। आपके अखंड भारत का स्वप्न को जानकर उन्होंने पूर्वी पाकिस्तान में ही रह कर काम करने की इच्छा जताई है। बासंती देवी ने आपका समाचार जानने के बारे में कहा है।
आनंद बाजार पत्रिका के 25 सितंबर 1974 से 22 सितंबर 1974 के अंक मिले हैं। आर्टिकिल लेखक वरुण सेन गुप्त का आर्टिकिल ध्यान खींचता है। क्या ताइहाकू विमान दुर्घटना सजाई हुई दुर्घटना थी। लेखक ने खोसला कमीशन में वकीलों की दलीलों को झूठा साबित किया है। यह भी सिद्ध किया है कि वह भविष्य में इसका प्रमाण भी प्रस्तुत कर सकता है। लेखक ने आजाद हिंद फौज की महिला खुफिया शाखा की मुखिया लीला राय के हवाले से उल्लेख किया है कि उन्होंने क्या मृत्यु के पूर्व नेता जी का बयान लिया था। कुछ लोग मानते हैं कि नेता जी जीवित हैं। लीला राय कुछ चुने हुए लोगों को लेकर नेपाल सीमांत नैमिषारण्य में एक साधु के पास ले गयीं। लीला राय ने साधु की वाणी मासिक पत्रिका में कई माह तक छापी थीं। महामानव या साधु ही नेता जी थे, यह स्पष्ट नहीं कहा जा सकता। शालमारी गांव में साधु को लेकर काफी शोर-गुल हुआ था कि नेता जी जीवित हैं, साधु ही नेता जी हैं। इसी के बाद वह शालमारी आश्रम छोड़ कर चले जाते हैं। कुछ समय बाद ढाका के अध्यापक अतुल सेन नैमिषारण्य आते हैं। वह साधु को देखकर अवाक रह जाते हैं। उन्होंने नेहरू का पत्र लिखा। नेहरू टरकाते रहे। पवित्र मोहन राय का कहना था कि लीला राय ने नेता जी को करीब से देखा था।
213 सुबूतों की गिनती बाकी
गुमनामी बाबा से जुड़ी वस्तुओं की गणना अब अंतिम पड़ाव पर है। मंगलवार को अंतरराष्ट्रीय राम कथा संग्रहालय के निदेशक योगेश कुमार, विथिक सहायक मानस तिवारी, कलेक्ट्रेट के प्रशासनिक अधिकारी सतवंत सिंह सेठी, आमंत्रित सदस्य शक्ति सिंह की मौजूदगी में 205 सबूतों की गिनती की गयी। मुखर्जी आयोग के इस बक्से से अभी तक 918 सबूतों की गिनती की जा चुकी है, बचे 211 सुबूतों की गिनती गुरुवार का पूरा होने का अनुमान है।
बोस के बारे में कुछ और जानने के लिए नीचे क्लिक करें - RAMESH KHOLA