rameshkhola

|| A warm welcome to you, for visiting this website - RAMESH KHOLA || || "बुद्धिहीन व्यक्ति पिशाच अर्थात दुष्ट के सिवाय कुछ नहीं है"- चाणक्य ( कौटिल्य ) || || "पुरुषार्थ से दरिद्रता का नाश होता है, जप से पाप दूर होता है, मौन से कलह की उत्पत्ति नहीं होती और सजगता से भय नहीं होता" - चाणक्य (कौटिल्य ) || || "एक समझदार आदमी को सारस की तरह होश से काम लेना चाहिए, उसे जगह, वक्त और अपनी योग्यता को समझते हुए अपने कार्य को सिद्ध करना चाहिए" - चाणक्य (कौटिल्य ) || || "कुमंत्रणा से राजा का, कुसंगति से साधु का, अत्यधिक दुलार से पुत्र का और अविद्या से ब्राह्मण का नाश होता है" - विदुर || || सचिव बैद गुर तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास - गोस्वामी तुलसीदास (श्रीरामचरितमानस, सुंदरकाण्ड, दोहा संख्या 37) || || जब आपसे बहस (वाद-विवाद) करने वाले की भाषा असभ्य हो जाये, तो उसकी बोखलाहट से समझ लेना कि उसका मनोबल गिर चुका है और उसकी आत्मा ने हार स्वीकार कर ली है - रमेश खोला ||

Welcome board

Natural

welcome

आपका हार्दिक अभिनन्दन है

Search

19 August 2016

THE GREAT INDIAN SOLDIER

1962 के भारत-चीन युद्ध में 72 घंटे तक अकेले चीनियों से लड़ने वाले महावीर चक्र (मरणोपरांत) विजेता राइफल मैन जसवंत सिंह रावत आज भी सीमा की रक्षा करते हैं

 शरीर तो मिट जाता है पर जज्बा हमेशा जिंदा रहता है। यह कहावत 1962 के भारत-चीन युद्ध में 72 घंटे तक अकेले चीनियों से लड़ने वाले महावीर चक्र (मरणोपरांत) विजेता राइफल मैन जसवंत सिंह रावत पर सटीक बैठती है। इसीलिए वह आज भी अमर हैं। जिस पोस्ट पर जसवंत सिंह शहीद हुए थे, भारत सरकार ने उसे जसवंत गढ़ का नाम दिया है। राइफल मैन जसवंत सिंह को भले ही वीरगति प्राप्त कर चुके है, लेकिन सैनिकों को विश्वास है कि इस रणबांकुरे की आत्मा आज भी देश की रक्षा के लिए सक्रिय है। सेना में मान्यता है कि जसवंत सिंह की शहादत के बाद भी उनकी आत्मा न सिर्फ भारतीय सैनिकों की निगरानी करती है, बल्कि ड्यूटी में सोने वाले सुस्त सैनिकों को चांटा मारकर चौकन्ना भी करती है। राइफल मैन जसवंत सिंह को सेना में 'बाबा जसवंत' के नाम से भी जाना जाता है। इस बहादुर सैनिक की स्मृति में (जिस पोस्ट में जसंवत सिंह शहीद हुए थे) अरुणाचल प्रदेश के नूरानांग में जसवंत गढ़ नाम से एक स्मारक बनाया है जो सभी सैनिकों के लिए धार्मिक स्थल है। 
पौड़ी जिले के ग्राम बांडयू में जसवंत सिंह 19 वर्ष की आयु में 19 अगस्त 1960 को सेना में भर्ती हुए। 14 सितंबर 1961 को ट्रेनिंग पूरी करने के बाद 1962 के भारत-चीन युद्ध लड़ा। 17 नवंबर 1962 को चौथी बटालियन की एक कंपनी नूरानांग ब्रिज की सुरक्षा के लिए तैनात हुई तो चीनियों ने इस दौरान भारी-गोलाबारी शुरू कर दी। राइफल मैन जसवंत सिंह अपने दो साथियों लांस नायक त्रिलोक सिंह व राइफल मैन गोपाल सिंह ने युद्ध में वीरता का शानदार परिचय दिया, लेकिन त्रिलोक सिंह व राइफल जसवंत सिंह गोलीबारी में वीरगति को प्राप्त हो गए।
युद्ध में तीन अधिकारी, पांच जेसीओ, 148 अन्य पद व सात गैर लड़ाकू सैनिक मारे जाने के कारण चौथी बटालियन की स्थिति कमजोर होने के बावजूद वीर सैनिकों ने दुश्मन को सफल नहीं होने दिया। युद्ध में पांच एलएमजी (लाइट मशीन गन) पोस्टों से अलग-अलग पोजिशन राइफल मैन जसवंत सिंह ने अकेले ही संभाली। जसवंत सिंह एक पोस्ट से दूसरी पोस्ट में दौड़-दौड़ कर गोली बारी करते रहे, ताकि दुश्मनों को यह एहसास होता रहे कि सभी पोस्टों में सैनिक मौजूद हैं। इस युद्ध में जसवंत सिंह वीर गति को प्राप्त हो गए हों, लेकिन इस समय भी जसवंत सिंह की आत्मा देश रक्षा के लिए सक्रिय है। 

चीनी भी हुए नतमस्तक 1962 के युद्ध में शहीद जसवंत सिंह ने जिस तरह युद्ध में अदम्य साहस व वीरता का परिचय दिया, उसे देख चीनी सैनिक भी भौचक्के रह गए। उन्होंने राइफल मैन जसवंत सिंह के पार्थिव शरीर को सलामी देकर उसके इस जज्बे को सलाम किया। 
आभारदैनिक जागरण

विजिटर्स के लिए सन्देश

साथियो , यहां डाली गयी पोस्ट्स के बारे में प्रतिक्रिया जरूर करें , ताकि वांछित सुधार का मौका मिले : रमेश खोला

संपर्क करने का माध्यम

Name

Email *

Message *

Visit .....

Login

Login

Please fill the Details for Login



Forgot password?

Sign up

Sign Up

Please fill in this form to create an account.



By creating an account you agree to our Terms & Privacy.