*ऐसा भी सुना है : वर्तमान कुतुबमीनार (जिसको विष्णू स्तम्भ / ध्रुव स्तम्भ कहा जाता था) महाराजा वीर विक्रमादित्य की वेदशाला थी. जहा बैठकर खगोलशास्त्री वराहमिहर ने ग्रहों, नक्षत्रों, तारों का अध्ययन कर, भारतीय कैलेण्डर "विक्रम संवत" का निर्माण किया था. यह झूठ प्रचारित किया गया कि क़ुतुब मीनार को कुतुबुद्दीन ऐबक ने बनबाया था
"शुभ्रक" की स्वामिभक्ति
कुतुबुद्दीन ऐबक ने राजपूताना (राजस्थान) में जम कर भारी कहर बरसाया और उदयपुर के 'राजकुंवर कर्णसिंह' को बंदी बनाकर लाहौर ले गया। 'राजकुंवर कर्णसिंह' का "शुभ्रक" नामक एक स्वामिभक्त घोड़ा था, जो कुतुबुद्दीन ऐबक को पसंद आ गया और वो उसे भी अपने साथ लाहौर ले गया। एक दिन कैद से भागने के प्रयास में 'राजकुंवर कर्णसिंह' को सजा-ए-मौत सुनाई गई और सजा देने के लिए जन्नत बाग में लाया गया। यह तय हुआ कि 'राजकुंवर कर्णसिंह' का सिर काटकर उससे गेंद की भाँति खेला जाएगा। कुतुबुद्दीन ऐबक ख़ुद 'राजकुंवर कर्णसिंह' के ही घोड़े "शुभ्रक" पर सवार होकर अपनी टोली के साथ जन्नत बाग में आया। "शुभ्रक" ने जैसे ही कैदी अवस्था में 'राजकुंवर कर्णसिंह' को देखा, उसकी आंखों से आंसू टपकने लगे। जैसे ही सिर कलम करने के लिए 'राजकुंवर कर्णसिंह' की जंजीरों को खोला गया, तो "शुभ्रक" से रहा नहीं गया , उसने उछलकर कुतुबुद्दीन ऐबक को अपनी पीठ से गिरा दिया और उसकी छाती पर अपने मजबूत पैरों से कई वार किए, जिससे कुतुबुद्दीन ऐबक के प्राण पखेरू उड़ गए , इस्लामिक सैनिक अचंभित होकर देखते रह गए। मौके का फायदा उठाकर 'राजकुंवर कर्णसिंह' सैनिकों से छूटे और "शुभ्रक" पर सवार हो गए। "शुभ्रक" हवा से बातें करने लगा लाहौर से उदयपुर का सफर तय करके , उदयपुर में महल के सामने आकर ही रुका, राजकुंवर घोड़े से उतरे और अपने प्रिय "शुभ्रक" को पुचकारने के लिए हाथ बढ़ाया, तो मानो वह प्रतिमा बना खडा था। सिर पर हाथ रखते ही 'शुभ्रक' का निष्प्राण शरीर लुढक गया भारत के इतिहास में यह तथ्य कहीं नहीं पढ़ाया जाता क्योंकि भारत मुस्लिमो के अधीन था और चाटुकार लेखक कुतुबुद्दीन ऐबक की ऐसी दुर्गति वाली मौत बताने से हिचकिचाते थे जबकि फारसी की कई प्राचीन पुस्तकों में कुतुबुद्दीन ऐबक की मौत शुभ्रक के द्वारा ही हुई ऐसा बताया गया है
नमन स्वामीभक्त 'शुभ्रक' को