Lack of "Permanent membership" in "The Security Council" of the world's largest democracy makes United Nations imperfect - Ramesh Khola , 08.04.2020
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
गद्दारी किसी धर्म , जात या कुल में नहीं होती , वो तो दिमाग में होती है
"राष्ट्र के गद्दारो को मृत्यु दण्ड देना चाहिए , तभी राष्ट्र सुरक्षित रह सकता है " -रमेश खोला ,07.04.2020
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ होली पर जल बचाओ, दीपावली पर पटाखा मत चलाओ, शिवरात्रि पर दूध मत बहाओ जैसे सन्देश भेजने वाले "जीव" शायद करोना से डरे बैठे है , पानी बचाना है तो साल में 364 दिन बचाये परन्तु होली अवश्य मनायें बदलना है तो अपना व्यवहार बदलो त्यौहार नही- रमेश खोला, 07.03.2020
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
दिल्ली तो भारत का दिल है यहां 90+% वोटिंग की उम्मीद रखनी चाहिए और यहां के लगभग 38% वोटरों का लोकतंत्र के इस पर्व से दूर रहना चिंता का विषय है , सबसे पहले दिल्ली में राजनीतिक जागृति लानी चाहिए - रमेश खोला, 09.02.2020
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
नरस्याभरणं रूपं रूपस्याभरणं गुण:। गुणस्याभरणं ज्ञानं ज्ञानस्याभरणं क्षमा॥ भावार्थ:
मनुष्य का आभूषण उसका रूप होता है, रूप का आभूषण गुण होता है, गुण का आभूषण ज्ञान होता है और ज्ञान का आभूषण क्षमा होता है।अर्थात् रूपवान् होना भी तभी सार्थक है जब सच्चे गुण, सच्चा ज्ञान और क्षमा मनुष्य के भीतर हो।
पंचेन्द्रियस्य मर्त्यस्य छिद्रं चेदेकमिन्द्रियम्। ततोऽस्य स्त्रवति प्रज्ञा दृतेः पात्रादिवोदकम्। भावार्थ : मनुष्य की पाँचों इंद्रियों में यदि एक में भी दोष उत्पन्न हो जाता है तो उससे उस मनुष्य की बुद्धि उसी प्रकार बाहर निकल जाती है, जैसे मशक (जल भरने वाली चमड़े की थैली) के छिद्र से पानी बाहर निकल जाता है ।
आत्मज्ञानं समारम्भः तितिक्षा धर्मनित्यता। यमर्थान्नापकर्षन्ति स वै पण्डित उच्यते ।। भावार्थ : जो अपने योग्यता से भली-भाँति परिचित हो और उसी के अनुसार कल्याणकारी कार्य करता हो, जिसमें दुःख सहने की शक्ति हो, जो विपरीत स्थिति में भी धर्म-पथ से विमुख नहीं होता, ऐसा व्यक्ति ही सच्चा ज्ञानी (बुद्धिमान) कहलाता है
राजा धर्ममृते द्विज: पवमृते विद्यामृते योगिन:।
कान्ता सत्वमृते हयो गतिमृते भूषा च शोभामृते।
योद्धा शूरमृते तपो वृतमते गीतं च पद्यान्यृते।
भ्राता स्नेहमृते नरो हरिमृते लोके न भाति क्वचित्।।
भावार्थ:
धर्म रहित राजा, पवित्रता रहित ब्राह्मण, ब्रह्मविद्या रहित योगी, सतीत्व रहित स्त्री, गति रहित घोडा, सुन्दरता रहित आभूषण, वीरता रहित योद्धा, व्रत रहित तप, पद्य रहित गान, स्नेह रहित भाई और भगवत प्रेम रहित मनुष्य संसार मे कही भी शोभा नहीं पाते।
आरोप्यते शिला शैले, यत्नेन महता यथा ।
पात्यते तु क्षणेनाध - स्तथात्मा गुणदोषयो: ॥
भावार्थ:
जिस तरह शिला को पर्वत के ऊपर महान यत्न से ले जाया जाता है और क्षण भर में सरलता से नीचे ढकेलना संभव है वैसे ही अपने गुण अथवा दोष से आत्मा का उत्थान अथवा पतन संभव है ।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
खबर
खबर की मरम्मत ( हास्य व्यंग्य )
1. अब किसी की बुद्धि पर शंका जाहिर करने के लिए ये लाइन ही काफी है
क्या आप चाय नहीं पीते - रमेश खोला , 08.02.2020
2. यूं कि बादाम खाने वालो से चाय ☕ पीने वाले कुछ ज्यादा आगे निकल जाएंगे -रमेश खोला , 08.02.2020
राजनीतिक प्रतिक्रिया
3. ट्रंप की मोदी से दोस्ती का परिणाम है ये सर्वे , क्योंकि मोदी चाय बेचकर ही पीएम बना था -रमेश खोला ,08.02.2020
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
भारत के "कुछ एक लोग" आज भी हमारे देश के "स्वदेशी कर्मठ मीडिया" की बजाय British Broadcasting Corporation ( BBC ) पर विश्वास करते है । ... क्यों ? क्या कोई सही कारण बता सकता है ? - रमेश खोला , 13.01.2020
-------------------------------------End---------------------------------------
No comments:
Post a Comment
आप, प्रतिक्रिया (Feedback) जरूर दे, ताकि कुछ कमी/गलती होने पर वांछित सुधार किया जा सके और पोस्ट की गयी सामग्री आपके लिए उपयोगी हो तो मुझे आपके लिए और अच्छा करने के लिए प्रोत्साहन मिल सके :- आपका अपना साथी - रमेश खोला