चरण धरत चिंता करत, चितवत चारों ओर |
सुवर्ण को खोजत फिरत , कवि -व्याभिचारी-चोर ||
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इश्क़ एक तरफा में यूँ मसरूर हो जाऊंगा मैं
श्याम तुम होंगे शमा , काफूर हो जाऊंगा मैं
मैं अगर मांगू जो तुमसे , मुझको तुम देना न कुछ
वर्ना फिर प्रेमी नही, मजदूर हो जाऊंगा मैं
मैं अगर चाहूँ तो चाहूँ , तुम ना मुझको चाहना
तुमने गर चाहा तो फिर , मगरूर हो जाऊंगा मैं
मैं अगर देखूं तो देखूँ , तुम ना मुझको देखना
तुमने गर देखा तो फिर , मशहूर हो जाऊंगा मैं
मैं अगर तड़पूँ तो तड़पूँ , दृग से बिन्दु टपकना न तुम
बिन्दु जो टपका, तो आँखों से तुम्हारी दूर हो जाऊंगा मैं
- श्री बिन्दु जी महाराज
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