भारत का राजदंड
सेंगोल तमिल भाषा के 'सेम्मई' शब्द से बना है जिसका अर्थ धर्म / सच्चाई या न्याय परायणता है |
देश को आजादी देने से पहले भारत के अंतिम वायसराय लार्ड माउंटबेटन ने जवाहरलाल नेहरू से पूछा, 'क्या सत्ता हस्तांतरण की कोई प्रक्रिया या समारोह होता है ?'
फिर जवाहरलाल नेहरू जी बोले, "राजाजी" (चक्रवर्ती राजगोपालाचारी) से बेहतर कौन बता सकता है |
तब 'राजाजी' यानी चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने बताया कि चोल वंश की एक परंपरा है जिसमें 'सेंगोल' ( राजदंड ) को सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक माना जाता है | सत्ता से हटने वाला राजा, सत्ता में आने वाले राजा को पुजारियों द्वारा विधि विधान से पूजित "सेंगोल" (राजदंड ) सौंपता है और आदेश देता है कि नया राजा अपनी प्रजा पर 'उचित और न्यायसंगत' तरीक़े से राज करे | यहां विदित रहे की राजा जब जब राजकार्य के लिए अपने सिंहासन पर बैठता था, तब तब उसके हाथ में संगोल ( राजदंड ) धारण करता था यानि संगोल सत्ता का प्रतीक है सभी की सहमति के बाद राजाजी ने इसे बनवाने के लिए तमिलनाडु के थिरुवदुथुराई अधीनम (मठ) को इसका ज़िम्मा सौंपा गया | मठाधीश ने मद्रास के "वुमुदी बंगारू चेट्टी ज्वैलर्स'"को सेंगोल बनाने को कहा | तब सुधाकर तथा एथिराजुलू नाम के दो कारीगर इस काम पर लगे और अंततः 5 फ़ुट लम्बा सेंगोल बन कर तैयार हो गया इसके बाद इस संगोल को दिल्ली लाया गया | 14 अगस्त 1947 की रात गाजे-बाजे के साथ चांदी के थाल पर सजा और पीताम्बर में लिपटा हुआ सेंगोल नेहरू जी के घर '17 यॉर्क रोड' पहुंचा. पुजारी ने नेहरू पर जल छिड़का, उनके माथे पर भस्म रगड़ी, कंधों पर पीताम्बर लपेटा और करीब रात " दस बजकर पैंतालीस मिनट" पर सेंगोल उन्हें थमा दिया.
बताया जाता है कि बाद में इस सेंगोल को नेहरु जी वाकिंग स्टिक के रूप में "नेहरू म्यूज़ीयम" में रखवा दिया गया था
'आज़ादी का अमृत महोत्सव' मनाते हुए तमिलनाडु में सेंगोल का जिक्र छिड़ा जिसे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने सुन लिया | इसके बाद सेंगोल को अपने निश्चत स्थान पर स्थापित करने की प्रक्रिया शुरू हुई और अंततः काली सम्वत 5124 / विक्रम संवत 2080 , ज्येष्ठ मास शुक्ल पक्ष अष्टमी तिथि (Date 28.05.2023 ) को नए संसद भवन उद्धघाटन के समय नए संसद में माननीय अध्यक्ष जी आसन के पास प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा इसे स्थापित कर दिया गया - रमेश खोला
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