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17 December 2013

Hanuman Chalisha

"श्री हनुमान चालीसा"

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॥दोहा॥

श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि ।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ॥

बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरौं पवन-कुमार ।
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं हरहु कलेस बिकार ॥
॥चौपाई॥

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर ।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर              ॥1॥

राम दूत अतुलित बल धामा ।
अञ्जनि-पुत्र पवनसुत नामा                ॥2॥

महाबीर बिक्रम बजरङ्गी ।
कुमति निवार सुमति के सङ्गी            ॥3॥

कञ्चन बरन बिराज सुबेसा ।
कानन कुण्डल कुञ्चित केसा               ॥4॥
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै ।
काँधे मूँज जनेउ साजै                        ॥5॥

शंकर स्वयं केसरीनन्दन ।
तेज प्रताप महा जग बन्दन                 ॥6॥
बिद्यावान गुनी अति चातुर ।
राम काज करिबे को आतुर                  ॥7॥

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया ।
राम लखन सीता मन बसिया               ॥8॥

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा ।
बिकट रूप धरि लङ्क जरावा               ॥9॥

भीम रूप धरि असुर सँहारे ।
रामचन्द्र के काज सँवारे                     ॥10॥

लाय सञ्जीवन लखन जियाये ।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये                    ॥11॥

रघुपति कीह्नी बहुत बड़ाई ।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई           ॥12॥

सहस बदन तुह्मारो जस गावैं ।
अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं             ॥13॥

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा ।
नारद सारद सहित अहीसा                 ॥14॥

जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते ।
कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते            ॥15॥

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीह्ना ।
राम मिलाय राज पद दीह्ना              ॥16॥

तुह्मरो मन्त्र बिभीषन माना ।
लङ्केस्वर भए सब जग जाना           ॥17॥

लील्यो ताहि मधुर फल जानू            ॥18॥

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं ।
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं         ॥19॥

दुर्गम काज जगत के जेते ।
सुगम अनुग्रह तुह्मरे तेते               ॥20॥

राम दुआरे तुम रखवारे ।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे                 ॥21॥

सब सुख लहै तुह्मारी सरना ।
तुम रच्छक काहू को डर ना              ॥22॥

आपन तेज सह्मारो आपै ।
तीनों लोक हाँक तें काँपै                  ॥23॥

भूत पिसाच निकट नहिं आवै ।
महाबीर जब नाम सुनावै                 ॥24॥

नासै रोग हरै सब पीरा ।
जपत निरन्तर हनुमत बीरा             ॥25॥

सङ्कट तें हनुमान छुड़ावै ।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै          ॥26॥

सब पर राम राय सिर ताजा ।
तिन के काज सकल तुम साजा          ॥27॥

और मनोरथ जो कोई लावै ।
सोई अमित जीवन फल पावै            ॥28॥

चारों जुग परताप तुह्मारा ।
है परसिद्ध जगत उजियारा               ॥29॥

साधु सन्त के तुम रखवारे ।
असुर निकन्दन राम दुलारे              ॥30॥

अष्टसिद्धि नौ निधि के दाता ।
अस बर दीन जानकी माता              ॥31॥

राम रसायन तुह्मरे पासा ।
सादर हो रघुपति के दासा               ॥32॥

तुह्मरे भजन राम को पावै ।
जनम जनम के दुख बिसरावै          ॥33॥

अन्त काल रघुबर पुर जाई ।
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई            ॥34॥

और देवता चित्त न धरई ।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई            ॥35॥

सङ्कट कटै मिटै सब पीरा ।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा            ॥36॥

जय जय जय हनुमान गोसाईं ।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं            ॥37॥

यह सत बार पाठ कर कोई ।
छूटहि बन्दि महा सुख होई           ॥38॥

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा ।
होय सिद्धि साखी गौरीसा             ॥39॥

तुलसीदास सदा हरि चेरा ।
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा            ॥40॥

॥दोहा॥

पवनतनय सङ्कट हरन मङ्गल मूरति रूप ।
राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप ॥

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