नाम : बर्बरीक
माता का नाम : मोर्वी ( कामकटंकटा )
पिता का नाम : घटोत्कच
दादी का नाम : हिडिम्बा
दादा का नाम : भीम ( पांडव )
महाभारत का युद्घ आरंभ होने वाला था और भगवान श्री कृष्ण युद्घ में पाण्डवों के साथ थे । जिससे यह निश्चित जान पड़ रहा था कि कौरव सेना भले ही अधिक शक्तिशाली है, लेकिन जीत पाण्डवों की ही होगी । ऐसे समय में भीम का पौत्र और घटोत्कच का पुत्र " बर्बरीक" ने अपनी माता से युद्ध देखने की इच्छा प्रकट की और माता को वचन दिया कि युद्घ में जो पक्ष कमज़ोर होगा वह उनकी ओर से लड़ेगा, उसकी माता भी प्रसन्न थी क्योंकि वह मानती थी की पांडव कौरवो के सामने बहुत कमजोर हैं , इसके लिए बर्बरीक ने महादेव को प्रसन्न करके उनसे "तीन अजेय" बाण प्राप्त किये थे।
परन्तु भगवान श्री कृष्ण को जब बर्बरीक की योजना का पता चला तब वे वेश बदलकर बर्बरीक के मार्ग में आ गये। श्री कृष्ण ने बर्बरीक को उत्तेजित करने हेतु उसका मजाक उड़ाया कि वह तीन वाण से भला क्या युद्घ लड़ेगा । कृष्ण की बातों को सुनकर बर्बरीक ने कहा कि उसके पास अजेय बाण है और वह एक बाण से ही पूरी शत्रु सेना का अंत कर सकता है तथा सेना का अंत करने के बाद उसका बाण वापस अपने स्थान पर लौट आएगा। इस पर श्री कृष्ण ने कहा कि हम जिस पीपल के वृक्ष के नीचे खड़े हैं
अगर अपने बाण से उसके सभी पत्तों में छेद कर दो तो मैं मान जाउंगा कि तुम एक बाण से युद्घ का परिणाम बदल सकते हो। इस पर बर्बरीक ने चुनौती स्वीकार करके भगवान शिव का स्मरण किया और बाण चला दिया । जिससे पेड़ पर लगे सभी पत्तों में छेद हो गया इसके बाद वो दिव्य बाण भगवान श्री कृष्ण के पैरों के चारों ओर घूमने लगा क्योंकि एक पत्ता भगवान कृष्ण ने चुपके से अपने पैरों के नीचे दबा लिया था भगवान श्री कृष्ण जानते थे कि धर्मरक्षा के लिए इस युद्घ में विजय पाण्डवों की होनी चाहिए और माता को दिये वचन के अनुसार अगर बर्बरीक कौरवों की ओर से लड़ेगा तो अधर्म की जीत हो जाएगी , इसलिए इस अनिष्ट को रोकने के लिए छदम वेश धारी श्री कृष्ण ने बर्बरीक से दान की इच्छा प्रकट की । जब बर्बरीक ने दान देने का वचन दिया तब श्री कृष्ण ने बर्बरीक से उसका सिर / शीश मांग लिया जिससे बर्बरीक समझ गया कि ऐसा दान मांगने वाला कोई साधारण व्यक्ति नहीं हो सकता और बर्बरीक ने छदम वेश धारी श्री कृष्ण से वास्तविक परिचय माँगा तो श्री कृष्ण ने उन्हें बताया कि वे "वासुदेव श्री कृष्ण" हैं। सच जानने के बाद भी बर्बरीक सिर का दान देने के प्रण पर अडिग था लेकिन एक शर्त रखी कि वह उनके विराट रूप के दर्शन चाहता है तथा महाभारत युद्घ को शुरू से लेकर अंत तक देखने की इच्छा रखता है। तब श्री कृष्ण ने कहा हे परमवीर बर्बरीक आपका ये दान युगो युगो तक याद जायेगा और आज के बाद आप मेरे श्याम नाम से जाने जाओगे
तुम हारे के सहारे बनकर भक्तो को जीत दिलवाओगे और कलियुग में आप मेरे भक्तो की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हुए लखदातार कहलाओगे यह वरदान पाकर वीर बर्बरीक ने अपने शीश का दान कर दिया इसके बाद भगवान श्री कृष्ण जी ने वीर बर्बरीक (श्री श्याम जी ) के शीश पर अमृत का छिड़काव कर उसे अमर बना दिया और एक पहाड़ी के ऊंचे स्थान पर विराजित कर दिया जहाँ से बर्बरीक के अमर शीश ने महाभारत का पूरा युद्घ देखा । युद्ध समाप्ति के पश्चात श्री कृष्ण के आदेश से "श्री श्यामजी" ( वीर बर्बरीक ) के शीश को तीर पर रखकर, तीर अज्ञात लक्ष्य की ओर छोड़ दिया जो जाकर राजस्थान के खाटू नामक गांव में स्थापित हो गया, जहां आज मेरे लखदातार श्री खाटूश्याम जी का परम धाम है
.............. ये सारी घटना आधुनिक वीर बरबरान नामक जगह पर हुई थी जो हरियाणा के हिसार जिले में हैं अब ये स्पष्ट बात है कि इस जगह का नाम वीर बरबरान वीर बर्बरीक के नाम पर ही पड़ा है I
दुःख तो इस बात का है कि जब आपके साथी रमेश खोला ने जून 2014 में मास्टर गजराज सिंह व् अन्य मित्रो के साथ इस "परम पवित्र धाम , श्री श्याम मंदिर " की यात्रा की, उससे लगभग एक माह पहले सुबह तीन बजे अचानक वो विशाल वृक्ष गिर गया था हैरानी की बात ये थी कि उस वक्त न आंधी थी और न तूफान, यह सूचना मंदिर के पुजारी व अन्य भक्तजनो ने हमे दी .......... बस सौभाग्य की बात ये है की गिरे हुए विशाल वृक्ष के दर्शन का तो मौका तो हमें मिला आज उस विशाल पेड़ की जड़ो से नए पौधे उग रहे है और आज भी इन नए उगे पेड़ के पत्तो में भी छेद है साथ ही सबसे बड़ी बात तो यह है कि जब जब नए पत्ते भी निकलते है तो उनमे भी छेद होता है - रमेश खोला , 08 July 2014
बोलो शीश के दानी की जय
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अब यह विशाल पीपल वृक्ष गिर चुका है
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नया पौधा
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मंदिर
इस मंदिर की यात्रा पर जाना चाहते है तो आपकी सुविधा के लिए नीचे गूगल मैप का लिंक दिया है
Google Map Link
(जहाँ दिया था शीश का दान , वही है.....यह दिव्य अस्थान )
बोलो खाटू नरेश की .....जय
बोलो शीश के दानी की .....जय
बोलो तीन बाण धारी की .....जय
बोलो हारे के सहारे की .....जय
बोलो मोर मुकुट-बंसी वाले की .....जय
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कब स्थापित हुआ था- खाटू धाम
प्रश्न : खाटू धाम , कब स्थापित हुआ था ?
उत्तर : सन 1777 में
बहुत ही उत्तम सरल शब्दों में सम्पूर्ण जानकारी श्री खाटू श्याम जी के बारे में। वहाँ पहुँचने का रेल और सड़क मार्ग तथा मन्दिर के खुलने बंद होने का समय भी लिख दें तो भक्तों को बहुत सुविधा हो जाएगी।
ReplyDeleteवैसे अब रेल मंत्री जी ने रींगस से खाटु श्याम तक रेल लाइन बनाने की घोषणा कर दी है।