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विशेष नोट :
उक्त दिया गया विवरण सोशल मिडिया / प्रिंट मिडिया आदि साधनो से लिया गया है , प्रयोग से पहले विशेषज्ञ की सलाह ले , लेखक यह पोस्ट मात्र जानकारी हेतु डाल रहा है हर प्रकार के प्रयोग के लिए आप खुद जिम्मेदार होंगे, ब्लाग ऑनर का किसी प्रकार से कोई लेना देना नहीं है
गोमुत्र के अद्भुत लाभ
आयुर्वेद के अनुसार देसी गाय का "गौ मूत्र" एक संजीवनी है | गौ-मूत्र एक अमृत के सामान है जो दीर्घ जीवन प्रदान करता है, पुनर्जीवन देता है, रोगों को भगा देता है, रोग प्रतिकारक शक्ति एवं शरीर की मांस-पेशियों को मज़बूत करता है|
आयुर्वेद के अनुसार यह शरीर में तीनों दोषों का संतुलन भी बनाता है और कीटनाशक की तरह भी काम करता है|
गौ-मूत्र का कहाँ-कहाँ प्रयोग किया जा सकता है (Uses of Gomutra) :
संसाधित किया हुआ गौ मूत्र अधिक प्रभावकारी प्रतिजैविक, रोगाणु रोधक (antiseptic), ज्वरनाशी (antipyretic), कवकरोधी (antifungal) और प्रतिजीवाणु (antibacterial) बन जाता है|
ये एक जैविक टोनिक के सामान है| यह शरीर-प्रणाली में औषधि के समान काम करता है और अन्य औषधि की क्षमताओं को भी बढ़ाता है| ये अन्य औषधियों के साथ, उनके प्रभाव को बढ़ाने के लिए भी ग्रहण किया जा सकता है|
गौ-मूत्र कैंसर के उपचार के लिए भी एक बहुत अच्छी औषधि है | यह शरीर में सेल डिवीज़न इन्हिबिटोरी एक्टिविटी को बढ़ाता है और कैंसर के मरीज़ों के लिए बहुत लाभदायक है|
आयुर्वेद ग्रंथों के अनुसार गौ-मूत्र विभिन्न जड़ी-बूटियों से परिपूर्ण है| यह आयुर्वेदिक औषधि गुर्दे, श्वसन और ह्रदय सम्बन्धी रोग, संक्रामक रोग (infections) और संधिशोथ (Arthritis), इत्यादि कई व्याधियों से मुक्ति दिलाता है|
गौ-मूत्र के लाभ (Benefits of Gomutra )
देसी गाय के गौ मूत्र में कई उपयोगी तत्व पाए गए हैं, इसीलिए गौमूत्र के कई सारे फायदे है|गौमूत्र अर्क (गौमूत्र चिकित्सा) इन उपयोगी तत्वों के कारण इतनी प्रसिद्ध है| देसी गाय गौ मूत्र में जो मुख्य तत्व हैउनमें से कुछ का विवरण।
1. यूरिया (Urea) : यूरिया मूत्र में पाया जाने वाला प्रधान तत्व है और प्रोटीन रस-प्रक्रिया का अंतिम उत्पाद है| ये शक्तिशाली प्रति जीवाणु कर्मक है|
2. यूरिक एसिड (Uric acid): ये यूरिया जैसा ही है और इस में शक्तिशाली प्रति जीवाणु गुण हैं| इस के अतिरिक्त ये केंसर कर्ता तत्वों का नियंत्रण करने में मदद करते हैं|
3. खनिज (Minerals): खाद्य पदार्थों से व्युत्पद धातु की तुलना मूत्र से धातु बड़ी सरलता से पुनः अवशोषित किये जा सकते हैं| संभवतः मूत्र में खाद्य पदार्थों से व्युत्पद अधिक विभिन्न प्रकार की धातुएं उपस्थित हैं| यदि उसे ऐसे ही छोड़ दिया जाए तो मूत्र पंकिल हो जाता है| यह इसलिये है क्योंकि जो एंजाइम मूत्र में होता है वह घुल कर अमोनिया में परिवर्तित हो जाता है, फिर मूत्र का स्वरुप काफी क्षार में होने के कारण उसमे बड़े खनिज घुलते नहीं है | इसलिये बासा मूत्र पंकिल जैसा दिखाई देता है | इसका यह अर्थ नहीं है कि मूत्र नष्ट हो गया | मूत्र जिसमे अमोनिकल विकार अधिक हो जब त्वचा पर लगाया जाये तो उसे सुन्दर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है |
4. उरोकिनेज (Urokinase):यह जमे हुये रक्त को घोल देता है,ह्रदय विकार में सहायक है और रक्त संचालन में सुधार करता है |
5. एपिथिल्यम विकास तत्व (Epithelium growth factor) क्षतिग्रस्त कोशिकाओं और ऊतक में यह सुधर लाता है और उन्हें पुनर्जीवित करता है|
6. समूह प्रेरित तत्व(Colony stimulating factor): यह कोशिकाओं के विभाजन और उनके गुणन में प्रभावकारी होता है |
7. हार्मोन विकास (Growth Hormone): यह विप्रभाव भिन्न जैवकृत्य जैसे प्रोटीन उत्पादन में बढ़ावा, उपास्थि विकास,वसा का घटक होना|
8. एरीथ्रोपोटिन (Erythropotein): रक्ताणु कोशिकाओं के उत्पादन में बढ़ावा |
9. गोनाडोट्रोपिन (Gonadotropins): मासिक धर्म के चक्र को सामान्य करने में बढ़ावा और शुक्राणु उत्पादन |
10. काल्लीकरीन (Kallikrin): काल्लीडीन को निकलना, बाह्य नसों में फैलाव रक्तचाप में कमी |
11. ट्रिप्सिन निरोधक (Tripsin inhibitor):मांसपेशियों के अर्बुद की रोकथाम और उसे स्वस्थ करना |
12. अलानटोइन (Allantoin): घाव और अर्बुद को स्वस्थ करना |
13. कर्क रोग विरोधी तत्व (Anti cancer substance): निओप्लासटन विरोधी, एच -११ आयोडोल - एसेटिक अम्ल, डीरेकटिन, ३ मेथोक्सी इत्यादि किमोथेरेपीक औषधियों से अलग होते हैं जो सभी प्रकार के कोशिकाओं को हानि और नष्ट करते हैं | यह कर्क रोग के कोशिकाओं के गुणन को प्रभावकारी रूप से रोकता है और उन्हें सामान्य बना देता है |
14. नाइट्रोजन (Nitrogen) : यह मूत्रवर्धक होता है और गुर्दे को स्वाभाविक रूप से उत्तेजित करता है |
15. सल्फर (Sulphur) : यह आंत कि गति को बढाता है और रक्त को शुद्ध करता है |
16. अमोनिया (Ammonia) : यह शरीर की कोशिकाओं और रक्त को सुस्वस्थ रखता है |
17. तांबा (Copper) : यह अत्यधिक वसा को जमने में रोकधाम करता है |
18. लोहा (Iron) : यह आरबीसी संख्या को बरकरार रखता है और ताकत को स्थिर करता है |
19. फोस्फेट (Phosphate) : इसका लिथोट्रिपटिक कृत्य होता है |
20. सोडियम (Sodium) : यह रक्त को शुद्ध करता है और अत्यधिक अम्ल के बनने में रोकथाम करता है |
21. पोटाशियम (Potassium) : यह भूख बढाता है और मांसपेशियों में खिझाव को दूर करता है |
22. मैंगनीज (Manganese) : यह जीवाणु विरोधी होता है और गैस और गैंगरीन में रहत देता है |
23. कार्बोलिक अम्ल (Carbolic acid) : यह जीवाणु विरोधी होता है |
24. कैल्सियम (Calcium) : यह रक्त को शुद्ध करता है और हड्डियों को पोषण देता है , रक्त के जमाव में सहायक|
25. नमक (Salts) : यह जीवाणु विरोधी है और कोमा केटोएसीडोसिस की रोकथाम |
26. विटामिन ए बी सी डी और ई (Vitamin A, B, C, D & E): अत्यधिक प्यास की रोकथाम और शक्ति और ताकत प्रदान करता है |
27. लेक्टोस शुगर (Lactose Sugar): ह्रदय को मजबूत करना, अत्यधिक प्यास और चक्कर की रोकथाम |
28. एंजाइम्स (Enzymes): प्रतिरक्षा में सुधार, पाचक रसों के स्रावन में बढ़ावा |
29. पानी (Water) : शरीर के तापमान को नियंत्रित करना| और रक्त के द्रव को बरक़रार रखना |
30. हिप्पुरिक अम्ल (Hippuric acid) : यह मूत्र के द्वारा दूषित पदार्थो का निष्कासन करता है |
31. क्रीयटीनीन (Creatinine) : जीवाणु विरोधी|
32.स्वमाक्षर (Swama Kshar): जीवाणु विरोधी, प्रतिरक्षा में सुधार, विषहर के जैसा कृत्य |
वौदिक ग्रंथों में गाय की उपयोगिता पर विस्तार से चर्चा की गई है गाय से मिलने वाले फायदे क्या हैं और आप कैसे अपने जीवन को स्वस्थ रख सकते हैं। यह अब वैज्ञानिक तौर पर भी सिद्ध किया जा चुका है की गाय का मूत्र कीटाणुनाशक है जो शरीर में विभ्भिन बीमारियों को दूर करने में सहायक है। गोमूत्र में कार्बोलिक एसिड, यूरिया, फाॅस्फेट, यूरिक एसिड, पोटैशियम और सोडियम होता है । जब गाय का दूध देने वाला महिना होता है तब उस के मूत्र में लेक्टोजन रहता है, जो ह्दय और मस्तिष्क के विकारों के लिए फायदेमंद होता है। गाय के मूत्र का उपयोग विभिन्न रोगों में कैसे किया जा सकता है आपको बताते हैं |
(पाठकगण एक बात का विशेष ध्यान रखे की गौमूत्र भी उसी गाय का लाभकारी है जिसे शुद्ध प्राकृतिक भोजन दिया जाता है तथा जिसे दूध बढाने के लिए जहरीले इंजेक्शन नहीं दिए जाते)
गाय के मूत्र का विभिन्न रोगों में उपयोग :
1. गौमूत्र में वात और कफ के सभी रोगों को पूरी तरह खत्म करने की शक्ति है। पित्त के रोगों को भी गौमूत्र खत्म करता है लेकिन कुछ औषधियों के साथ ।
2. वात, पित्त और कफ के कुल 148 रोग हैं। भारत में इन 148 रोगों को अकेले खत्म करने की क्षमता यदि किसी वस्तु में है तो वो है देशी गाय का गौमूत्र । गोमूत्र वात, पित्त, कफ तीनों की सम अवस्था में लाने के लिए सबसे ज्यादा मदद करता है ।
3. आधा कप गोमूत्र सुबह खाना खाने के एक घंटे पहले बवासीर/बादी और खूनी, फिस्टुला, भगन्दर, अर्थराइटिस, जोड़ों का दर्द, उक्त रक्त दबाव, हृदयघात, कैंसर आदि ठीक करने के लिए लें ।
4. गौमूत्र में वही 18 सूक्ष्म पोषक तत्व हैं जो कि मिट्टी में होते हैं। ऐसा वैज्ञानिकों का परीक्षण कहता है। भारत में cDRI लखनऊ, वैज्ञानिकों की दवाओं पर काम करने वाली सबसे बड़ी संस्था है। शरीर की बीमारियों को ठीक करने के लिए शरीर को जितने घटक चाहिए तो सब गौमूत्र में उपलब्ध हैं जैसे-सल्फर की कमी से शरीर में त्वचा के रोग होते हैं।
5. गौमूत्र पीने से त्वचा के सभी रोग ठीक होते हैं, जैसे-सोराइसिस, एक्जिमा, खुजली, खाज, दाल जैसे सब तरह के त्वचा रोग ठीक होते हैं। गौमूत्र से हड्डियों के रोग भी ठीक होते हैं। गौमूत्र से खाँसी, सर्दी, जुकाम, दमा, टी.वी., अस्थमा जैसी सब बीमारियाँ ठीक होती हैं। गोमूत्र से ठीक हुई टी.वी. दुबारा उस शरीर में नहीं आती है। गोमूत्र से शरीर की प्रतिरोधक शक्ति इतनी अधिक बढ़ जाती है कि इससे बीमारियाँ शरीर में प्रवेश नहीं कर पाती हैं।
6. टी.वी. की बीमारी में डाट्स की गोलियों का असर गौमूत्र के साथ 20 गुना बढ़ जाती है अर्थातृ सिर्फ गौमूत्र पीने से टी.वी. 3 से 6 महीने में ठीक होती है, सिर्फ डाट्स की गोलिशाँ खाने से टी.वी. 9 महीने में ठीक होती है और डाट्स की गोलियाँ और गौमूत्र साथ-साथ देने पर टी.वी. 2 से 3 महीने में ठीक हो जाती है।
7. गौमूत्र का असर गले के कैंसर पर आहार नली के कैंसर पर पेट के कैंसर पर बहुत ही अच्छा है। गौमूत्र के असर को कैंसर के केस में अध्ययन/प्रयोग के लिए बलसाड (गुजरात) में एक बहुत बड़ा अस्पताल बन रहा है। जिसे कुछ जैन समाज के लोगों ने बनवाया है।
8. शरीर में जब करक्यूमिन नाम के तत्व की कमी होती है। तभी शरीर में कैंसर का रोग आता है। गौमूत्र में यही करक्यूमिन भरपूर मात्रा में है और पीने के तुरन्त बाद पचने वाला है। जिससे कि तुरंत असरकारक हो जाता है।
दवा के प्रति अच्छी भावना नहीं होने से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता उस दवा को पचाने में कम हो जाती है इसलिए दवाओं को हमेशा सकारात्मक भाव से ही ग्रहण करना चाहिए।
9. हरड़े पानी में घिस कर देने पर कम लाभ करती है और गौमूत्र में घिस कर देने पर अधिक लाभ करती है।
10. गौमूत्र हमेशा सुबह को ही लेना चाहिए। बहुत बीमार व्यक्ति को 100 ग्राम पीना चाहिए। इसे आधा-आधा करके भी ले सकते हैं। खाली पेट यानी सुबह-सुबह, कुछ भी खाने से 1 घंटे पहले जो बीमार हैं वह दिन में दो बार भी ले सकते हैं और स्वस्थ लोगों को सिर्फ सुबह ही लेना चाहिए। स्वस्थ लोगों को 50 ग्राम से ज्यादा नहीं पीना चाहिए। बँधी हुई गाय का मूत्र उतना उपयोगी नहीं है। जर्सी गाय के मूत्र में सिर्फ तीन पोषक तत्व होते हैं।
11. आँख के सभी रोग कफ के हैं और आँख के कोई रोग जैसे मोतियाबिंद (कैटरेक्टर), ग्लुकोमा, रैटिनल डिटैचमेन्ट (इसका दुनिया में कोई इलाज नहीं है यहाँ तक कि ऑपरेशन भी नहीं है) । इसके साथ ऑखों की सभी छोटी-छोटी बीमारियाँ जैसे आँखों का लाल होना, आँखों से पानी निकलना, आँखों में जलन होना, ये सभी छोटी-बड़ी बीमारियाँ गौमूत्र से ठीक होती हैं।
मतलब पूरी तरह से ठीक होती हैं। गौमूत्र सूती कपड़े के आठ परत से छानकर 1-1 बूंद आँखों में डालना है। आँखों के चश्मे 6 महीने में उतर जायेंगे। ग्लुकोमा बिना ऑपरेशन ठीक होता है-4 सवा चार महीने में, कैटरक्त-6 सा 6 महीने में ठीक हो जाता है। रेटिनल डिटैचमेन्ट को एक साल लगता है।
12. 1-1 बूंद रोज सुबह-सुबह डालना है और 3 से 4 दिनों में बीमारी ठीक हो जायेगी। बच्चे जिनकी पसलियाँ कफ की वजह से परेशान कतरी हैं, एक चम्मच गौमूत्र पीला दें तुरंत आराम मिलना शुरू हो जायेगा। ऐसा बड़े लोग भी कर सकते हैं मात्रा आधा कप बढ़ाकर ।
13. मूत्र पिण्ड के सभी रोग जैसे किडनी फेल होने के और किडनी के दूसरी तकलीफों के लिए गौमूत्र 1/2 कप रोज सुबह खाली पेट लें।
14. पेशाब से संबंधित किसी भी रोग (लगभग 22 से 28 रोग) में गौमूत्र 1/2 कप रोज सुबह खाली पेट लें।
15. कब्जीयत की बीमारी में 1/2 कप गौमूत्र 3 से 4 दिन सुबह-सुबह खाली पेट पियें, बिल्कुल ठीक हो जायेगी।
16. पित्त के सभी रोगों के लिए गौमूत्र जब भी पियें, उन समयों में घी (देशी गाय का) का सेवन खाने में अधिक करें। पित्त के रोगी गौमूत्र का इस्तेमाल पानी बराबर मात्रा में मिलाकर करें जैसे एसिडिटी, हाईपर एसिडिटी, अल्सर, पेप्टिक अल्सर, पेट में घाव हो गया आदि के लिए।
17. गौमूत्र की मालिश करने से त्वचा के सफेद धब्बे सब चले जायेंगे। खाज, खुजली एग्जिमा थोड़ा गौमूत्र रोज मालिश करें सब ठीक हो जायेगा।
18. आँखों के नीचे काले धब्बे हैं। गौमूत्र रोज सुबह-सुबह लगाएं, काले धब्बे चले जायेंगे। गौमूत्र नहीं मिले तो गौमूत्र का अर्क ले सकते हैं। अर्क 1 चम्मच से अधिक नहीं लेना चाहिए। अर्क को ऑख में डालने के लिए प्रयोग न करें।
19. कैंसर ठीक करने वाला तत्व करक्युमिन हल्दी के साथ-साथ गौमूत्र में भी भरपूर मात्रा में होता है। गौमूत्र ताजा पीना चाहिए, 48 मिनट के अन्दर गौमूत्र बोतल में भरकर 4-5 दिन तक रख सकते हैं। बोतल काँच का होना चाहिए।
20. गाय जो साफ-सुथरे वातावरण में रहती हो, अच्छा चारा खाती हो और नियमितन रूप से घुमने के लिए जाती है, उसका मूत्र जरूर पियें वो सबसे ज्यादा लाभकारी होगा। यदि ऐसी गाय का अभाव हो तो बिना संकोच के किसी भी देशी गाय का गौमूत्र ले लें। ऐसा मूत्र नुकसान नहीं करेगा जब भी कुछ करेगा फायदा ही करेगा।
अब तक के सारे शोध यही बताते हैं कि देशी गाय के गौमूत्र का कोई साइड इफेक्ट नहीं है। गौमूत्र अधिक पी लेने पर पेशाब के रास्ते बाहर निकल जाता है। अर्थात् किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुँचता है। इसमें सिर्फ इतनी बात ध्यान में रखनी है कि गाय देशी हो और गाय गर्भवती न हो, गाय बीमार न हो ।
21. गौमूत्र में गेंदे के फूल की चटनी बनाकर उबालकर थोड़ा हल्दी डालकर कैंसर के केस में बहुत ही तेजी से लाभ मिलता है।
22. हैपेटाइटिस परिवार (A, B, c, D, E, F) की बीमारियाँ जिसे ज्चाइन्डिस के नाम से या पीलिया के नाम से हम जानते हैं, ये सारी बीमारियाँ गौमूत्र से ठीक होती हैं।
23. वात और कफ के रोगी बिना कुछ मिलाये गौमूत्र का सेवन कर सकते हैं जैसे दमा, अस्थमा, सर्दी, खांसी आदि।
24. 18 वर्ष से अधिक की स्थिति में गौमूत्र की मात्रा 1/2 कप (50 ग्राम) और 18 वर्ष से अधिक की स्थिति में 25 ग्राम। गौमूत्र पीने का सर्वोत्तम समय सुबह-सुबह निराआहार अर्थात् खाली पेट, कुछ भी खाने के 1 घंटे पहले । जो बीमारी जितने समय में आती है, उतने समय में ही जाती है। अतः लंबी और गंभीर बीमारियों की स्थिति में गौमूत्र कम से कम 3 महीना लेना चाहिए और छोटी बीमारियों की स्थिति में 2 हफ्ते से 1 महीने तक गौमूत्र लेना चाहिए।
25. सर्दी, खाँसी, जुकाम, डायरिया डिसेन्ट्री, कान्स्टीपेशन जैसी बीमारियाँ 2-3 दिन में मिट जाती हैं। 8 महीने से अधिक लेने की स्थिति में हर 8 महीने के बाद 15 दिन से 20 दिन का अन्तर रखना आवश्यक है। ऐसा इसलिए करना चाहिए कि भविष्य में इसकी आदत न लगे ।
26. गोबर और गौमूत्र का उपयोग दोनों तरह से अच्छा होता है, आन्तरिक और बाहरी । बाहरी स्थिति में दाद, खाज, खुजली, दाग, धब्बे आदि की स्थिति में, गौमूत्र लगाने के बाद 10 से 15 मिनट सूर्य की रोशनी में छोड़ने के बाद धो देना चाहिए।
27. गाय का मूत्र जीवराशि रहित है इसलिए जैन लोग भी इसका सेवन कर सकते हैं। जैन लोग गौमूत्र के स्थान पर गौ अर्क का उपभोग कर सकते हैं। जैन लोग गोबर का इस्तेमाल न करें। गौमूत्र अर्क का सेवन 1 चम्मच से 2 चम्मच करें। चाहें तो 1/2 कप गुनगने पानी में मिलाकर भी ले सकते हैं। गौमूत्र यदि 2-3 दिन पुराना है तो उसमें जरूर पानी मिलायें।
विशेष नोट :
उक्त दिया गया विवरण सोशल मिडिया / प्रिंट मिडिया आदि साधनो से लिया गया है , प्रयोग से पहले विशेषज्ञ की सलाह ले , लेखक यह पोस्ट मात्र जानकारी हेतु डाल रहा है हर प्रकार के प्रयोग के लिए आप खुद जिम्मेदार होंगे, ब्लाग ऑनर का किसी प्रकार से कोई लेना देना नहीं है
जय गौ माता जय श्री कृष्ण जय गौ माता