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11 March 2017

The Rewari Principality History

++ रियासत-ए-रेवाड़ी के शूरवीर क्षत्रिय यदुवंशी अहीर रजवाड़े+++
रेवाड़ी रियासत क्षत्रिय यदुवंशी अहीर-राणाओं के आन बान और रजवाड़ों की गवाह रही है।
1856 तक रेवाड़ी रियासत एक बड़ा Princely state था।
रेवाड़ी रियासत के यदुवंशी रजवाड़ों का इतिहास गौरवमयी रहा है।
जौधपुर और बिकानेर रियासत के राठौड़ रजवाड़े और रेवाड़ी रियासत के यदुवंशी अहीर रजवाड़े एक साथ बैठकर युद्ध की रणनीति बनाया करते थे।
बात उस समय की है जब रेवाड़ी के राजगद्दी पर ठाकुर राव रामसिंह यादव आसीन हुए।
रेवाड़ी रियासत की सीमाएं फैल रही थी।
रेवाड़ी रियासत की कीर्ति यहाँ के यदुवंशी अहीर राजा ठाकुर राव रामसिंह यादव और उनके सेनापति राव मित्रसेन अहीर ने अपने शमशीर के दम पर बड़ाई।
परमवीर योद्धा , तेग का धनी , फतेह्नसीब, जंगजू पुत्र - राव मित्रसेन i अहीरवाल की कोई भी दास्तान , इस शूरमा के बगैर अधूरी है - बहरोड़ ठिकाणे के सान्तोरिया गोत्र के यदुवंशी अहीर सरदार और रेवाड़ी रियासत के वजीर-ए -आज़म राव तुलसीराम सिंह यादव का शेर राव मित्रसेन जीवन भर लड़ता रहा और फतेह्नसीब ऐसा की जंग में कभी शिकस्त नहीं देखी i
आइये, पहले मानढण (Maandhan ) की रण की गाथा सुनते हैं -
सन १८१४ ई. ,नबाब दौलतखान कायमखानी झुंझुनू वाला , राजा सार्दुल सिंह शेखावत से लड़ाई में हार कर अपनी जान बचाने के लिए फर्रुखनगर के नबाब के पास शरण लेने के लिए आया i
शेखावत सरदार ने नबाब फर्रुखनगर को कहला भेजा कि अगर हमारे दुश्मन को पनाह दोगे तो हम तुम्हारे पर हमला कर देंगे i नबाब फर्रुखनगर ने डर के मारे दौलतखान कायमखानी को कहा हम अब आप को शरण नहीं दे सकते , आप को शरण देने की ताकत तो सिर्फ रेवाड़ी के यदुवंशी अहीर रजवाड़ों के पास है i अब नबाब दौलतखान रेवाड़ी नरेश के पास शरण में आया तो यदुवंसी नरेश ने अपना शरणागत की रक्षा के धर्म की पालना करते हुए मौजा झोलरी और पांच गाँव इलाका नाहड़ के नबाब को गुज़ारा - भत्ता के लिए दे दिए i जब इस बात का पता शेखावत राजपूतो को पता चला तो उन्होंने रेवाड़ी नरेश को कहा कि हमारे दुश्मन को रख कर आप ने ठीक नहीं किया , इस पर राव मित्रसेन ने कहा कि ये हमारी शरण में आया है और हम चंद्रवंशी आर्य क्षत्रिय अपने धर्म से नहीं हटेंगे चाहे कुछ भी हो जाये i बात बढ़ गयी और शेखावत सार्दुल सिंह अपनी फौज और जयपुर की कछवाहा फौज साथ ले कर रेवाड़ी पर चढ़ आया i राव मित्रसेन ने अपने यदुवंशी अहीर सरदारों को रण के लिए न्योता भेजा और अहीरवाल की फौज को लेकर राव मित्रसेन ने मानढण (Maandhan ) आ कर शेखावतों के फौज के सामने डट गए i
दोनों ओर के शूरमाओ ने तलवार म्यान से खींच ली और रणभेरी बज गयी i अहीरवाल की फौज, शेखावाटी और जयपुर के राजपूतों की फौज से लोहा टकराने लगी i खप्पर लेके जोगनी रणभूमि में घूम रही थी i बीस हज़ार शेखावटी और कच्छवाहा के मुकाबले में छह हज़ार मर्द कौम यदुकुले चंद्रवंशी आर्य अहीर रण-खेतों में जोर आजमा रहे थे i अहीरवाल के हर गोत्र के यदुवंशी अहीर सरदार अपने हिस्से का खून रेवाड़ी नरेश की आन-बाण के लिए बहाने के लिए, नंगा तेगा लाल लहू में रंग रहे थे i कोई भी रण में पीछे हटने को तैयार नहीं था i बहरोड़ के यदुवंशी अहीर ठिकाणे के सान्तोरिया सरदारों ने अपने नेजों और तलवारों की मार से कच्छवाहों की सेना में अफरा -तफरी फैला दी ,राव कृपाराम सिंह यादव सुपुत्र राव मेद सिंह यादव सेहलंग वाला, अपनी तलवार से , अपने मर्द होने को साबित कर रहे थे, दोंगडा अहीर के राव सीताराम सिंह यादव शेखावटी सेना को काटता हुआ जुझार हो गया और स्वर्ग की अप्सराएँ उस वीर को पुष्प -वर्षा करते हुए ले गयीं अपने साथ i एक मोर्चा गुरावड़ा और मंदोला के वीर गुणवाल सरदारों ने खोल रखा था , गुणवाल सरदार राव उदय सिंह यादव सुपुत्र राव नूप सिंह यादव और राव ज़हरी सिंह यादव सुपुत्र राव किशन सिंह यादव सरकशी कर रहे थे , गुणवाल राव कुशल सिंह यादव ने मोर्चे पर ऐसी तलवार चलायी की सब सरदारों ने आफरीन-आफरीन कही थी i
३५ गुणवाल सरदार कठिन तलवार चलाते हुए जुझार हो गए और अप्सराएँ ने उन्हें भी ले जा कर इंद्रा सभा में वीरों वाला आसन दे दिया i दुसरे मोर्चे पर हरबला गोत्र के रातां ठिकाणे के सरदारों - राव सर्वसुख सिंह यादव , राव डूंगर सिंह यादवऔर राव जयकिशन सिंह जी की शमशीरे रण-भूमि में चमक रही थी , हरबला सरदारों ने नवल सिंह राजपूत सरदार के हाथी के हौदा में ऐसी तलवार मारी की हाथी और उसका सवार दोनों धरती पर गिर गए i ठिकाणे बिहाली के गाजोधिया सरदार राव सदाराम सिंह यादव अपने साथियों के साथ ऐसा तेगा चला रहा था की उनकीं जौहर मर्दानगी के सब कायल हो गए , वीर सदाराम सिंह जी अपने भाई -बंधो के साथ शेखावतो से लोहा लेते हुए रण-खेतों में काम आये और वे भी इंद्रा सभा में अपने भाइयों के साथ विराजमान हुए i गढ़ बोलनी के आफरिया सरदार राव सीताराम सिंह जी और लक्ष्मण सिंह जी सुपुत्रान राव बालमुकुन्द सिंह यादव ने अपनी तलवारों से जोगिनी के खप्पर को शेखावती सेना के खून से भर दिया i अहीर सरदारों राव रणजीत सिंह यादव जी सुपुत्र राव सावंत सिंह जी और राव देवी सिंह जी यादव सुपुत्र राव हरजीमल कोसली वाला, सरदार मोती सिंह यादव और भगवन्त सिंह यादव मांदी वाले, सरदार बुध सिंह जी यादव भाड़ावास वाले , सरदार अनूप सिंह यादव और सूरज सिंह यादव सुपुत्रान राव मनीराम सिंह जी डैरोली नांगल वाले , सरदार हरजीमल और हठी सिंह यादव गणडाला वाले , सरदार गंगाराम सिंह जी उदयरामसर वाले , राव हरसुख सिंह यादव खोला मसीत वाले और सरदार हरसुख सिंह सुपुत्र राव खिमानंद सिंह यादव नंगल खोड़िया वाले अपने भाई -बंधो के साथ फौज अहीरवाल में शामिल थे और अपनी तलवारों से अपना जौहर दिखा रहे थे i
महाबली सरदार राव गुमानी सिंह कनीना वाले ने शेखावटी सेना के सर काट - काट कर , नर -मुण्डो से धरती की गोद को भर दिया i नवल सिंह और अखे सिंह सुपुत्रान शार्दुल सिंह शेखावत, वीर अहीरों की तलवारों के काम आये और शूर सिंह जो की बहुत नामी-गिरामी राजपूत था , वो भी अहीरों ने काट दिया , शार्दुल सिंह के चौबीस पुत्र अहीरवाल की तलवारों की भेंट चढ़ गए i मानढण (Maandhan ) के रण खेतों का रंग लाल हो गया लहू की धारों से i १५००० हज़ार फौज शेखावत और जयपुर के कछवाहो की युद्ध में काट दी गयी और कुल फौज अहीरवाल की छह हज़ार में से सिर्फ नब्बे बची और बाकी सब शूरमा अहीरवाल जुझार हो गए i शेखावतों और कछवाहो ने मैदान छोड़ दिया और फ़तेह राव मित्रसेन को मिली i ऐसी कठिन तलवार चली थी मानढण (Maandhan ) के रण-खेतों में की जयपुर व दिल्ली के तख़्त तक राव मित्रसेन की तलवार का का नाम हो गया था i
अपने पराक्रम से शेखावतों और जैपुरिया कछवाहा फौज को शिकस्त दे कर अहीरवाल की तलवारों का जौहर का डंका बजवा दियाi
वीर राव मित्रसेन फतेह्नसीब ऐसा था कि जिधर चढ़ा उधर ही उसकी तलवार के सामने विजयश्री नतमस्तक हो गयी i और गुस्सैल ऐसा कि एक बार दिल्ली शहर के मोहल्ले ढोर - कसाईयान के हर आदमी को गुस्से में कत्ल कर दिया i किस्सा ये हुआ कि जब राव मित्रसेन ने कसाइयों को गाय काटते देखा तो उन्होंने गुस्से में पुरे मुस्लिम मोहल्ले को ही अपनी तलवार से काट डाला i जब मुग़ल बादशाह को ये पता चला तो उसने राव मित्रसेन को गिरफ्तार करने का हुक्म दे दिया i मुगलिया फौज रेवाड़ी पर चढ़ आई लेकिन राव मित्रसेन ने मुगलों को मार भगाया i राव मित्रसेन बहुत ही गुस्सैल मिजाज़ के थे - एक बार वो किसी के साथ चौसर खेल रहे थे और उनका दीवान उनके पास बैठा था i दीवान ने एक चाल बता कर राव मित्रसेन की गोटी मरवा दी i बाज़ी खत्म होते ही राव मित्रसेन ने दीवान के बेटे को मरवा दिया , दीवान बहुत रोया - चिल्लाया तो इस पर राव मित्रसेन बोले कि जितना दर्द तुम्हे बेटे के मरने पर हुआ है उतना ही दर्द हमे अपनी गोटी के मरने पर हुआ था i पर अपने जानिसारों को राव मित्रसेन इतने अज़ीज़ थे की उनके मरने के बाद कोई भी किसी दुसरे के पास नौकरी करने नहीं गया i
१७७६ ई . में एक बार रेवाड़ी को लूटने के लिए मराठा फौज चढ़ आई तो राव मित्रसेन ने उन्हें मार भगाया इस के बाद मौजा कपूरी परगना कांटी के चोहानों ने लूट -खसूट शुरू कर के मवेशी चुराना शुरू कर दिया , इस की खबर पाते ही राव मित्रसेन ने चोहानो पर चढ़ाई कर दी i चोहानो की मदद के लिए शेखावाटी और तंवर आ गए लेकिन राव मित्रसेन ने बड़ी घमाशान लड़ाई के बाद सब को मार भगाया i इसी प्रकार सिया के चोहानो को भी मार भगाया i
राव मित्रसेन तमाम उम्र हथियारबन्ध ही रहा और सारा जीवन लडाइयों में ही गुज़ार दिया, पर वीर ऐसा था की कभी भी किसी भी युद्ध में शिकस्त नहीं देखी i बुलंद कद के खूंखार राव मित्रसेन की बरछी की मार से मराठा भी डरते थे , दो बार मराठो ने रेवाड़ी पर हमला किया और दोनों ही बार राव मित्रसेन ने उन्हें मार भगाया i इस प्रकार मेरे इस जंगजू बेटे ने अपना पूरा जीवन तलवार के सहारे गुज़ार दिया और १७८६ में देह त्याग दी i
॥वीर भोग्या वसुंधरा॥
॥जय यदुकुले चंद्रवंशी आर्य क्षत्रिय॥
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