बाबा मंसादास / मंसाराम
"जय बोलो बाबा मनसाराम महाराज की जय"
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बाबा मंसाराम (दादूपंथी संत, बाबा मंसादास नाम से पुकारते है) भगवान श्रीराम जी के परम भक्त थे , उन्होंने वस्त्रो तक का त्याग कर रखा था अर्थात नागा साधु थे , बाबा मंसाराम जी से डहीना निवासी नेतराम मनिहार के पिता "घीसाराम मनिहार" ने हरिद्वार में भेंट की। बाबा के सानिध्य में वे कुछ दिन वहाँ रहे, फिर आते वक्त बाबा से विनम्र प्रार्थना की, कि हे महाराज आपकी चरण रज से मेरे गाँव "डहीना" की धरती को भी पवित्र करने की मेहरबानी करना , बाबा मंसाराम जी ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली और एक दिन दैविये योग से बाबा मंसाराम जी के पावन चरण डहीना की धरती पर पड़े | बाबा गाँव से बाहर गोराला कुँआ के पास पीपल के पेड़ के नीचे रुके, जहाँ आज बाबा का दिव्य अस्थान है | बाबा मंसाराम जी ने यहाँ सालों तप किया और डहीना की धरती को पवित किया | इसे बाबा मंसाराम की मंढी के नाम से जाना जाता था जहाँ बाबा के सेवकों ने बाद में बाबा का विग्रह रूप स्थापित कर मंदिर का निर्माण करवा दिया है
बाबा दिव्य शक्तियों के धनी (स्वामी) थे , ऐसी दिव्य विभूति की शरण में जाकर भक्तों की मनोकामना पूरी होने लगी | लोंगो ने उन्हें अपना गुरु मान लिया | डहीना के सेवकों (चेलों) ने उनसे वस्त्र धारण करने की प्रार्थना की , बाबा मंसाराम जी ने उनकी बात मानते हुए "चादर धारण की" | तब से भक्तजन बाबा को चादर उढ़ाने लगे और यह परम्परा आज भी है कि बाबा की मंढी पर चादर चढ़ाई जाती है जिसे भक्त बाबा के "चरण स्थान" के रूप में आज भी पूजते है | इस प्रकार दिन प्रतिदिन लोगो की मनोकामना पूरी होती जा रही थी और बाबा के सेवकों ( चेलों ) की संख्या बढ़ती जा रही थी
समय बीतता चला गया सेवकों के ज्यादा आवागमन से बाबा मंसाराम की समाधी में विघ्न पड़ने लगा इस लिए बाबा मंसाराम ने सभी भक्तों (सेवकों) को बुला कर अपनी इच्छा बताई की मुझे समाधि लगाने के लिए एकांत स्थान चाहिए तब भक्तो ने बाबा की इच्छानुसार लगभग सन 1879-1880 में गांव से लगभग 4 किलो मीटर दूर पश्चिम दिशा में घने जंगल में बाबा के लिए एक अस्थान (झोपड़ी) बनाई | जहाँ बाबा की झोपड़ी (अस्थान) बनाई वहाँ आज एक भव्य मंदिर है जहाँ बाबा मंसाराम की समाधि बनी हुई है ,
यह स्थान वर्तमान में कपूरी जिला महेंद्रगढ़ (जहां तीन गाँव डहीना , जैनाबाद और कपूरी की सीमा लगती है) में स्थित है , उस वक़्त गाँव डहीना नाभा रियासत का ही एक गाँव था और उस समय यह परम पवित्र धाम गाँव डहीना गांव में ही था बाद में आजादी के बाद राज्य बटवारे के समय,पेप्सू (PEPSU=Patiala and East Punjab States Union) नामक राज्य बना, 1948 में नए बने पेप्सू राज्य में 8 जिले बनाये गए (1.पटियाला, 2. बरनाला, 3. बठिंडा, 4. फतेहगढ़, 5. संगरूर, 6.कपूरथला, 7.सोलन, 8.महेंद्रगढ़) जिसमे महेन्द्रगढ़ भी एक जिला था उस समय डहीना गाँव भी जिला महेंद्रगढ़ में ही था | 1 नवंबर 1956 को पेप्सू राज्य, नव-गठित पंजाब राज्य में मिला दिया गया । जिलों के सीमांकन के दौरान यह अस्थान कपूरी गाँव के अधीन चला गया - रमेश खोला
बाबा के चमत्कार
बाबा के दरबार में सच्ची श्रद्धा से रखी गयी विनती ( WISH )...बाबा मंसाराम ( मंसादास ) जरूर पूरी करते हैं। वैसे तो बाबा के चमत्कार हर पल देखने को मिलते है जिनका वर्णन संभव नहीं है कुछ चमत्कार इस प्रकार से है
राजा हीरा सिंह को दिया पुत्र रत्न
नाभा रियासत के राजा हीरा सिंह एक दिन "बाबा मनसाराम " की शरण में आ गए। वे संतान सुख से वंचित थे . बाबा से अरदास की, "हे बाबा मंसाराम महाराज भगवान का दिया ये वैभव या राज्य मेरे किसी काम का नहीं, क्योकी मुझे संतान सुख प्राप्त नहीं हुआ है ... कृपा मुझ गरीब की झोली संतान रूपी आशीर्वाद से भर दे" परम तपस्वी श्रीराम जी के अनन्य भक्त बाबा मनसाराम ने कहा "जा बच्चा अगले साल इन्ही दिनों में तू मेरे द्वार पे अपने पुत्र के साथ ही आएगा " बाबा के वचन सुन कर राजा को विश्वास ही नहीं हो रहा था ऐसा परम दयालू संत जो मातृ अरदास लगने से ही प्रसन्न हो गए। ये तो सच में "मन से राम" जैसे ही है
समुद्र में फंसे जहाज को पार निकला
एक बार एक सेठ ( डहीना निवासी ) का जहाज समुद्र में फंस गया था , सेठ ने खूब प्रयत्न किये पर जहाज निकलने का नाम ही नहीं ले रहा था थक हार कर सेठ जी ने समुद्र स्थान से ही बाबा मंसाराम (मनसादास ) जी का स्मरण कर बाबा से विनती कि की "हे बाबा मंसाराम आज तेरा भक्त गहरे संकट में फंस गया मुझे इस घोर संकट से उभारो नहीं तो मेरा बर्बाद होना निचित है , यदि मेरा जहाज सकुशल निकल जायेगा तो मैं आपके धाम पर माथा टेकने जरूर आऊंगा और 1100 रूपये आपकी सेवा में अर्पित करूँगा ,
कुछ देर बाद ही ऐसा चमत्कार हुआ कि फंसा हुआ जहाज निकल गया , समय बीतता गया धुलंडी का त्यौहार आया , बाबा ने अपने सेवको से पूछा कि फलाना सेठ आया था सेवा क्या चढ़ा कर गया है , सेवको ने जो राशि बताई वो 1100 रु से कम थी , बाबा ने आदेश दिया की उस सेठ जी को बुला कर लाओ ,
कुछ देर बाद सेठ जी बाबा के सम्मुख हाजिर हुए , बाबा ने पूछा लाला जी जहाज अब तो ठीक चल रहा है
सेठ जी ने उत्तर दिया : हाँ बाबा आपकी मेहर से सब ठीक है
बाबा ने पूछा लाला जी जो चढ़ावा बोलल्या था वो चढ़ा दिया या भूल गए
(सेठ सोच रहा था कि चढ़ावा के पैसे तो मैंने समुद्र तट से विनती की तब बोले थे लेकिन बाबा को कैसे पता चला की मैंने चढ़ावा के रूपये बोले थे )
सेठ जी ने कहा : हाँ बाबा चढ़ा दिए
बाबा ने कहा जितने बोले थे उतने ही चढ़ाये है या कम - बत्ती
( सेठ जी चौक पड़े और बाबा के चरणों में लेट गए और सोचने लगे मैने 1100 रूपये बोले थे , बाबा को कैसे पता चला ) उस वक्त 1100 रुपये कोई मामूली बात नहीं थी
सेठ की मन की बात समझ कर बाबा ने अपनी पीठ दिखाई "पीठ पर रस्सों ने निशान" देख कर सेठ को चक्कर आने लगे
बाबा ने कहा : ये तेरी जहाज निकलने के दौरान पड़े हुए निशान है , झूठ बोलना बुरी बात है यदि तेरी हिम्मत 1100 रु चढ़ाने की नहीं थी तो बता देता कि बाबा इतनी आसंग नहीं है , लेकिन चतुराई करना गलत बात है, लाला जी
सेठ ने बाबा के चरणों में गिरकर क्षमाप्रार्थना की
और दयालु कृपालु बाबा मंसाराम ने उस सेठ साहब हो क्षमा कर दिया
बाबा की मेहर हुई सेठ का धंधा अच्छा चला और कुछ समय बाद में सेठ जी ने अपने चढ़ावा के बचे हए रूपये भी चढ़ा दिए - रमेश खोला
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मन की पांच अवस्थाएं होती हैं : 1. मूढ़ 2. क्षिप्त 3. विक्षिप्त 4. एकाग्र 5. निरूद्ध।
मूढ़ावस्था में तमोगुण प्रधान रहता है रज और सत्व दबे हुए रहते हैं। यह काम क्रोध लोभ मोह के कारण होती है।
क्षिप्तावस्था मे रजोगुण की प्रधानता रहती है तम और सत्व दबे हुए रहते हैं। यह राग द्वेष के कारण होती है।
विक्षिप्ता वस्था मे सत्व गुण प्रधान रहता है रज और तम दबे रहते हैं। काम क्रोध लोभ मोह राग द्वेषादि के छोड़ने से यह अवस्था होती है। मनुष्य की प्रवृत्ति धर्म ज्ञान वैराग्य की होती है।
एकाग्रावस्था मे चित्त की वृत्तियां किसी एक लक्ष्य पर एकाग्र होती हैं। यह मन की निर्मल अवस्था है जिसमे राग द्वेष काम क्रोध लोभ मोह आदि विकृतियां खत्म हो जाती हैं। यह सबीज़ समाधि है।
निरूद्धावस्था मे मन के समस्त विचार एवं क्लेष खत्म हो जाते हैं। यह निर्बीज समाधि है।
- रमेश खोला
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आरती
बाबा का जन्म कब हुआ और कहाँ?बाबा ने सन्यास ग्रहण कब किया? Dahina आने से पहले कहाँ तप किया, चमत्कार तो मैंने भी मेरे परदादा ओर दादा जी से ओर परदादी दादी जी से बहुत सुने हैं मैं 64 वर्ष का हूँ dahina गांव में पैदा हुआ,वर्तमान में राजस्थान के हनुमान गढ़ में रहता हूं और वकालत मेरा पेशा है
ReplyDeleteबाबा के जन्म के बारे में बुजुर्गों पूछा तो इस बारे कोई तथ्य ज्ञात नहीं है कि जन्म कब और कहाँ हुआ था ?
Deleteवामन द्वादशी के उपलक्ष्य में 15 सितंबर 2024 को मेला, भंडारा व धार्मिक गायन
ReplyDeleteभक्तजन बाबा मंसादास जी महाराज के "चरण धाम" डहीना, पर पहुंचने के लिए इस Google Map लिंक का प्रयोग कर सकते है
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