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07 January 2024

बाबा सायर

     बाबा सायर मंदिर, डहीना    

ब्रह्मलीन बाबा सायर 

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बाबा सायर मंदिर, डहीना 

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मकर संक्रांति महोत्सव 

14 जनवरी 2026  (बुधवार)

विशाल मेला और भंडारा 

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सतगुरु जी मेरे साथ हैं अब डरने की क्या बात  New

तुम साथ हो जो मेरे किस चीज है 

भोले तेरे दरबार में 

सदा वसतं हृदयाविन्दे भवंभावनी सहितं नमामि

मेरे शम्भू मेरे संग रहना 

लौट के मुश्किल मेरा घर को जाना हो गया 

जय जय शम्भू 

हम तो बाबा के भरोसे

भोले का भक्त 

बाबा सायर धाम

दादा सायर

जहाँ जहाँ तेरे पांव पड़े 

लाडला चेला 

तेरा नशा है 

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मकर संक्रांति महोत्सव 

14 जनवरी 2025 (मंगलवार)


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तीज मेला 2024

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मकर सक्रांति महोत्सव 2024 



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बाबा सायर का इतिहास 

गाँव डहीना रेवाड़ी जिले में स्थित है , पहले यह गाँव महेंद्रगढ़ जिले में आता था उससे पहले यह गाँव गुरुग्राम (गुड़गाँवा) जिले में आता था | ऐसा कहा जाता है कि गाँव डहीना "दादा रंगराज यादव" ( कई लोग "दादा दुर्गा प्रसाद यादव" नाम भी बताते है) ने बसाया था |  जिनकी याद में "बाबा भैया" का मंदिर बनाया हुआ है | जिसे "खेड़ा का धनि" भी कहते है अर्थात इन्होने ही यह खेड़ा (गाँव ) बसाया था | 
इनके चार पुत्र थे, कहीं कहीं सुनने में आता है कि इनके पांच पुत्र थे 
1. राजू 
2. पेचू 
3. सायर 
4.  नाम ज्ञात नहीं है 
(ना औलाद, असामयिक निधन)

5. जैना
 (सुनने में आता है कि जैना उनका पाँचवा पुत्र था )


1. राजू के नाम  से राजास  पट्टी है , इस पट्टी में बाबा राजू की संताने बसती है  |
2. पेचू  के नाम  से पचायन पट्टी है , इस पट्टी में बाबा पेचू की संताने बसती है |
3. सायर के नाम  से सायर पट्टी है , इस पट्टी में बाबा सायर की संताने बसती है |

............ ऐसा सुना है बाबा सायर ने अपने, ना-औलाद भाई जिनका असामयिक निधन हो गया था, की जमीन गऊओं / गौ चारण  के लिए छोड़ने को कहा था लेकिन बाबा राजू और बाबा पेचू नहीं माने और जमींन बाबा राजू  (राजास पट्टी) और बाबा पेचू (पचायन पट्टी) ने आपस में बाँट ली , बाबा सायर (सायर पट्टी) ने  उसकी जमीन  लेने से इंकार कर दिया, इसी  कारण यदि कुल 100 एकड़ जमीन  माने  तो राजास पट्टी के पास 37.5 एकड़ (3/8हिस्सा) , पचायन पट्टी  के पास 37.5 एकड़ (3/8हिस्सा)  और सायर पट्टी के पास 25 एकड़ (1/4 हिस्सा ) जमीन है |

" बाबा सायर "
 "दादा रंगराज" उर्फ़  "दादा दुर्गा प्रसाद" जी का एक  पुत्र  "शेर सिंह" था जिसका नाम अपभ्रंश होते हुए "सायर सिंह" हुआ और बाद उन्हें लोग "सायर" के नाम से जानने लगे जिसे अब हम "बाबा सायर" कहते है  | जिनकी याद में "बाबा सायर वाला जोहड़ और मंदिर" आज भी गाँव डहीना में स्थित है |


1960-61
 { सायर बाबा की याद  97 कनाल 15 मरला जमीन (खसरा न 193 ) पर सायरवाला जोहड़ और बाबा सायर की यादगार बनी हुई थी , सायरवाला जोहड़ में उस समय कृष्णावती ( कंसावती नदी ) आकर गिरती थी जो बुचारा बांध ( जो जयपुर के नजदीक राजस्थान राज्य में स्थित है ) बनने से आणि बंद हो गयी , जिसकी अब सन 2025 में  निमोठ गाँव तक खुदाई की जा चुकी है | 1962 में चकबंदी हुई उस चकबंदी स्कीम  में भी  इस जमींन  (97 कनाल 15 मरला) में जोहड़ है दिखाया गया था }

बुजुर्गो से ऐसा सुना है कि  बाबा सायर , बहुत ही बलवान और साहसी व्यक्ति थे , वे निडर थे और कामड़ी  (लाठी) के अच्छे चलाने वाले थे | वे एक सामाजिक व्यक्ति थे , सामाजिक कार्यो में सदा अग्रणी भूमिका निभाते थे इसलिए ............जब ना-औलाद भाई की जमीन "गौ चारण"  के लिए छोड़ने के लिए बाबा राजू और बाबा पेचू नहीं माने तो, बाबा सायर उनसे नाराज हो गए 


continue................ plz visit again

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