सप्तर्षि संवत् : 5101
सप्तऋषि संवत 3076 ईसा पूर्व से आरम्भ होता है। महाभारत काल तक इस संवत् का प्रयोग होता था। वर्तमान में कश्मीर में सप्तर्षि संवत् को 'लौकिक संवत्' कहते हैं और जम्मू व हिमाचल प्रदेश में 'शास्त्र संवत्' के नाम से जानते है
मास एवं उनका महत्व
कार्तिक मास
स्नानं च दीपदानं च तुलसीवनपालनम् । भूमिशय्या ब्रह्मचर्य्यं तथा द्विदलवर्जनम् । कार्तिक मास में सूर्योदय से पहले स्नान तीर्थ स्नान के समान होता है , जप :- "ॐ नमो नारायणाय"
स्कंद पुराण में लिखा है : ‘कार्तिक मास के समान कोई और मास नहीं हैं, सत्ययुग के समान कोई युग नहीं है, वेदों के समान कोई शास्त्र नहीं है और गंगाजी के समान दूसरा कोई तीर्थ नहीं है ’ – ( वैष्णव खण्ड, का.मा. : १.३६-३७)
"हरिजागरणं प्रातःस्नानं तुलसिसेवनम् । उद्यापनं दीपदानं व्रतान्येतानि कार्तिके" - (पद्मपुराण, उत्तरखण्ड, अध्याय 115)
महापुण्यदायक तथा मोक्षदायक कार्तिक के मुख्य नियमों में सबसे प्रमुख नियम है : दीपदान । दीपदान का अर्थ होता है आस्था के साथ दीपक प्रज्वलित करना। कार्तिक में प्रत्येक दिन दीपदान जरूर करना चाहिए। पद्मपुराण उत्तरखंड, अध्याय 121 में कार्तिक में दीपदान की तुलना अश्वमेघ यज्ञ से की है सूर्यग्रहे कुरुक्षेत्रे नर्मदायां शशिग्रहे ।। तुलादानस्य यत्पुण्यं तदत्र दीपदानतः । अर्थात कुरुक्षेत्र में सूर्यग्रहण के समय और नर्मदा में चन्द्रग्रहण के समय अपने वजन के बराबर स्वर्ण के तुलादान करने का जो पुण्य है वह केवल दीपदान से मिल जाता है। कार्तिक में प्रतिदिन दो दीपक जरूर जलाएं । एक गाय के घी का श्रीहरि नारायण के समक्ष तथा दूसरा तेल का शिवलिंग के समक्ष ।
संकलनकर्ता - रमेश खोला , 10.10.2022
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नमोस्तु सर्पेभ्यो ये के च पृथ्वीमनु। येऽ अंतरिक्षे ये दिवितेभ्य: सर्पेभ्यो नम:।।
महत्वपूर्ण बातें
क्या आप जानते है ? पांडवों ने ये 5 गांव कौरवो से मांगे थे - पांडुप्रस्थ (पानीपत), स्वर्णप्रस्थ (सोनीपत) , व्याघ्रप्रस्थ (बागपत), वारणावर्त (बरनावा , हिण्डन/, यहाँ लाक्षागृह बनाया था ) और वरुपत (तिलपत , फरीदाबाद)
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क्या आप जानते है ? , ईशान कोण में तुलसी का पौधा लगाने से तथा पूजा के स्थान पर गंगाजल रखने से घर में लक्ष्मी की वृद्धि होती है | घर के अंदर, लक्ष्मी जी बैठी हों ऐसा फोटो रखना चाहिए और दुकान के अंदर, लक्ष्मी जी खड़ी हों ऐसा फोटो रखना चाहिए
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।। अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता । अस बर दीन्ह जानकी माता ।। - तुलसीदास जी (श्री हनुमान चालीसा)
आठ सिद्धियाँ इस प्रकार हैं :- (1) अणिमा (2) महिमा (3) गरिमा (4) लघिमा (5) प्राप्ति (6) प्राकाम्य (7) वशित्व (8) ईशित्व ।
आठ सिद्धियों के प्राप्ति फल के बारे में जानने के लिए नीचे क्लिक करें
नौ निधियां इस प्रकार है :- (1) पद्म निधि (2) महाप निधि (3) मकर निधि (4) कच्छप निधि (5) मुकुन्द निधि (6) कुन्द (नन्द) निधि (7) नील निधि (8) शंख निधि (9) मिश्र निधि
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10 इन्द्रियां एवं उनके स्वामी
पांच ज्ञानेंद्रियां एवं उनके देवता चक्षु (नेत्र) : भास्कर (सूर्य ) कर्ण (कान) : आकाश (दिशा ) नासिका (नाक) : पृथ्वी ( अश्वनी कुमार ) रसना (जिह्वा ) : वरुण (जल ) त्वक (चर्म/खाल/त्वचा ) : वायु ( पवन )
पांच कर्मेंद्रियां एवं उनके देवता हस्त (हाथ ) : इंद्र चरण : उपेंद्र ( विष्णु ) वाणी (मुँह ) : अग्नि उपस्थेन्द्रिय / लिंग (लघुशंका इंद्री ) : प्रजापति पायु /गुदा (निव्रतेंद्री ) : यमराज (मृत्यु)
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संकलनकर्ता - रमेश खोला , 06.05.2022
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