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|| A warm welcome to you, for visiting this website - RAMESH KHOLA || || "बुद्धिहीन व्यक्ति पिशाच अर्थात दुष्ट के सिवाय कुछ नहीं है"- चाणक्य ( कौटिल्य ) || || "पुरुषार्थ से दरिद्रता का नाश होता है, जप से पाप दूर होता है, मौन से कलह की उत्पत्ति नहीं होती और सजगता से भय नहीं होता" - चाणक्य (कौटिल्य ) || || "एक समझदार आदमी को सारस की तरह होश से काम लेना चाहिए, उसे जगह, वक्त और अपनी योग्यता को समझते हुए अपने कार्य को सिद्ध करना चाहिए" - चाणक्य (कौटिल्य ) || || "कुमंत्रणा से राजा का, कुसंगति से साधु का, अत्यधिक दुलार से पुत्र का और अविद्या से ब्राह्मण का नाश होता है" - विदुर || || सचिव बैद गुर तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास - गोस्वामी तुलसीदास (श्रीरामचरितमानस, सुंदरकाण्ड, दोहा संख्या 37) || || जब आपसे बहस (वाद-विवाद) करने वाले की भाषा असभ्य हो जाये, तो उसकी बोखलाहट से समझ लेना कि उसका मनोबल गिर चुका है और उसकी आत्मा ने हार स्वीकार कर ली है - रमेश खोला ||

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23 November 2023

Panchang

पंचांग



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 साल 

मुबारक हो तुम्हे नया साल,
फलो फूलो , जैसे आम का फाल 
पतझर न आये जिन्दगी में कभी ,
प्रभु की माया कर दे आपको निहाल - रमेश खोला 



कलि सम्वत ( प्राचीन भारतीय साल ) :- 5127  

भारतीय शास्त्रों एवं धर्मग्रंथों के अनुसार : कलियुग की शुरुआत, कलि सम्वत प्रथम, फाल्गुन मास, शुक्ल पक्ष सप्तमी (18 फरवरी 3102 ईसा पूर्व ) की मध्य रात्रि को हुई थी। इस दिन योगेशवर भगवान श्री कृष्ण जी ने वैकुंठ लौटने के लिए पृथ्वी छोड़ी थी।
आधुनिक विज्ञान के अनुसार : खगोलशास्त्री और गणितज्ञ आर्यभट्ट के अनुसार कलियुग की शुरुआत 3102 ईसा पूर्व में हुई थी। 

सप्तर्षि संवत् :  5101 

  सप्तऋषि संवत 3076 ईसा पूर्व से आरम्भ होता है। महाभारत काल तक इस संवत् का प्रयोग होता था। वर्तमान में कश्मीर में सप्तर्षि संवत् को 'लौकिक संवत्' कहते हैं और जम्मू व हिमाचल प्रदेश में 'शास्त्र संवत्' के नाम से जानते है


विक्रम सम्वत ( आधुनिक भारतीय साल ) :- 2081


 ईशा मसीह वर्ष अंग्रेजी सा ) :- 2024
 ( नोट : अंग्रेजी कलेंडर पोप ग्रेगरी XIII द्वारा सन 1577-1582 में बनाया गया )

शक सम्वत (भारतीय सरकारी साल ) :- 1946


महीनों के नाम
1. चैत्र (चैत ) शुक्लपक्ष (अर्धमास ) , 
{चैत्र मास का शुक्लपक्ष (अर्धमास) हमारा प्रथम मास होता है,  चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा (एकम) को हम नववर्ष मानते हैं }
बैसाख (वैशाख  
ज्येष्ठ (जेठ) , 
 4 आषाढ़ (साढ़) , 
 5 श्रावण (सावन) , 
श्रावण अधिमास
श्राव(सावन)
6 भाद्रपद (भादवा) ,  
 7 अश्विन (आशोज) , 
 8 कार्तिक (कातक) , 
मार्गशीर्ष (मंगसिर /गहन ) 
 10  पौष (पौह) , 
11. माघ (माह) ,  
12. फाल्गुन (फागण 
13. चैत्र (चैत ) कृष्णपक्ष  (अर्धमास ) 
(चैत्र मास का कृष्णपक्ष (अर्धमास) हमारा अंतिम मास होता है)



हमारे मासों (महीनों ) के नाम नक्षत्रों के नामों पर रखे गये हैं।
जिस मास की पूर्णिमा को चन्द्रमा जिस नक्षत्र पर होता है उसी नक्षत्र के नाम पर उस मास का नाम है
1. चित्रा नक्षत्र से चैत्र मास
2. विशाखा नक्षत्र से वैशाख मास
3. ज्येष्ठा नक्षत्र से ज्येष्ठ मास
4. पूर्वाषाढा नक्षत्र / उत्तराषाढा नक्षत्र  से आषाढ़
5. श्रावण नक्षत्र से श्रावण मास 
6. पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र  / उत्तराभाद्रपद नक्षत्र  से भाद्रपद 
7. अश्विनी नक्षत्र से अश्विन मास 
8. कृत्तिका नक्षत्र से कार्तिक मास 
9. मृगशिरा नक्षत्र से मार्गशीर्ष मास 
10. पुष्य नक्षत्र से पौष मास 
11. माघा नक्षत्र से माघ मास
12. पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र / उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र  से फाल्गुन मास

विदेशियों ने भारत के ज्ञान को चुरा कर,  अपने नाम करना चाहा  जिसे आप नीचे  दिया गया विवरण पढ़कर खुद समझ जाओगे 
विदेशियों ने भारत की नक़ल कि लेकिन नक़ल में  अक्ल की जरुरत होती है 

1. जनवरी महीने का नाम रोमन के देवता 'जेनस' के नाम पर रखा गया | हम नक्षत्रों के नाम पर नामकरण करें तो भी पिछड़े और अंधविश्वासी और वो देवी देवताओं के नाम पर नामकरण करें तो ज्ञानी ..... उन्हें तब तक शायद नक्षत्रों का ज्ञान भी नहीं था

2. फरवरी महीने का नाम रोम की देवी 'फेब्रुएरिया' के नाम पर रखा गया | हम नक्षत्रों के नाम पर नामकरण करें तो भी पिछड़े और अंधविश्वासी और वो देवी देवताओं के नाम पर नामकरण करें तो ज्ञानी ..... उन्हें तब तक शायद नक्षत्रों का ज्ञान भी नहीं था

3. मार्च महीने का नाम रोमन देवता 'मार्स' के नाम पर रखा गया | हम नक्षत्रों के नाम पर नामकरण करें तो भी पिछड़े और अंधविश्वासी और वो देवी देवताओं के नाम पर नामकरण करें तो ज्ञानी ..... उन्हें तब तक शायद नक्षत्रों का ज्ञान भी नहीं था

4. अप्रैल महीने का नाम लेटिन शब्द 'ऐपेरायर' से बना है, जिसका मतलब है 'कलियों का खिलना'ऐसा लगता है उन्हें ऋतु (महीनों का समूह) और महीने का अंतर् तक नहीं पता था | रोम में इस महीने में बसंत मौसम की शुरुआत होती है जिसमें फूल और कलियां खिलती हैं , वो हमारी बसन्त ऋतु को नहीं मानते क्योकि हम तो पिछड़े और अंधविश्वासी हैं उनकी नज़र में और हमारे कुछ ज्यादा पढ़े लिखे लोगो की नज़र में भी 

5. मई महीने का नाम रोमन के देवता 'मरकरी' की माता 'माइया' के नाम पर रखा गया |  हम नक्षत्रों के नाम पर नामकरण करें तो भी पिछड़े और अंधविश्वासी और वो देवी देवताओं के नाम पर नामकरण करें तो ज्ञानी ..... उन्हें तब तक शायद नक्षत्रों का ज्ञान भी नहीं था

6. जून महीने का नाम रोम के सबसे बड़े देवता 'जीयस' की पत्नी 'जूनो' के नाम पर रखा गया | हम नक्षत्रों के नाम पर नामकरण करें तो भी पिछड़े और अंधविश्वासी और वो देवी देवताओं के नाम पर नामकरण करें तो ज्ञानी ..... उन्हें तब तक शायद नक्षत्रों का ज्ञान भी नहीं था

7. जुलाई महीने का नाम रोमन साम्राज्य के शासक 'जुलियस सिजर' के नाम पर रखा गया क्योकि जुलियस का जन्म और मृत्यु इसी महीने में हुई थी , जरा सोचो की "जूलियस सीजर" से पहले इस महीने का नाम क्या होगा ? 

8. अगस्त महीने का नाम 'सैंट आगस्ट सिजर' के नाम पर रखा गया,  जरा सोचो की 'सैंट आगस्ट सिजर से पहले इस महीने का नाम क्या होगा ? 

यहाँ तक तो उन्होंने अपने लोगो और देवी देवताओ के नाम पर, हमारे महीनो के नाम छाप लिए .... अब आगे के महीने देखो 

9. सितंबर महीने का नाम लेटिन शब्द 'सेप्टेम' से बना है, सेप्टै लेटिन शब्द है जिसका अर्थ है सात यानि भारतीय महीनो के हिसाब से अश्वनी मास, साल का सातवां महीना होता है रोम में सितंबर को सप्टेम्बर कहा जाता है। ग्रेगोरियन कलेण्डर के हिसाब से सितम्बर नौवा महीना होता है , अब आप सोचो की नकल तो की पर अक्ल नहीं लगाई , भला नौवे महीने को उन्होंने सातवाँ क्यों माना ?

10. अक्टूबर महीने का नाम लेटिन के 'आक्टो' शब्द से लिया गया , 'आक्टो' लेटिन शब्द है जिसका अर्थ है आठ यानि भारतीय महीनो के हिसाब से कार्तिक मास, साल का आठवां महीना होता है , ग्रेगोरियन कलेण्डर के हिसाब से अक्टूबर दसवाँ महीना होता है , अब आप सोचो की नकल तो की पर अक्ल नहीं लगाई , भला दसवेँ महीने को उन्होंने आठवाँ क्यों माना ?

11. नवंबर महीने का नाम लेटिन के 'नवम' शब्द से लिया गया , 'नवम' शब्द का अर्थ है नौ यानि भारतीय महीनो के हिसाब से मार्गशीष मास, साल का नौवा महीना होता है , ग्रेगोरियन कलेण्डर के हिसाब से नवम्बर ग्यारहवां महीना होता है , अब आप सोचो की नकल तो की पर अक्ल नहीं लगाई , भला ग्यारहवें महीने को उन्होंने नौवा क्यों माना ?
 
12. दिसंबर महीने का नाम लेटिन के 'डेसम' शब्द से लिया गया , ''डेसम' शब्द का अर्थ है दस यानि भारतीय महीनो के हिसाब से पौष मास, साल का दसवाँ महीना होता है ग्रेगोरियन कलेण्डर के हिसाब से दिसम्बर बारहवाँ महीना होता है , अब आप सोचो की नकल तो की पर अक्ल नहीं लगाई , भला बारहवें महीने को उन्होंने दसवाँ  क्यों माना ?

क्या अब भी आप ये मानते है कि भारत विश्व गुरु नहीं था ?

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राशि
मेष 🐐  (चू, चे, चो, ला, ली, लू, ले, लो, अ)
वृष 🐂  (ई, ऊ, ए, ओ, वा, वी ,वु , वे, वो)
मिथुन 👫  (का, की, कू, घ, ङ, छ, के, को, हा)
कर्क 🦀  (ही, हू, हे, हो, डा, डी, डू, डे, डो)
सिंह 🦁  (मा, मी, मू, मे, मो, टा, टी, टू, टे)
कन्या 👩  (टो, पा, पी, पू, ष, ण, ठ, पे, पो)
तुला ⚖️ ( रा, री, रू, रे, रो, ता, ती, तू, ते)
वृश्चिक 🦂  (तो, ना, नी, नू, ने, नो, या, यी, यू)
धनु 🏹  (ये, यो, भा, भी, भू, ध, फा, ढा, भे)
मकर 🐊  (भो, जा, जी, खी, खू, खा, खो, गा, गी)
कुंभ 🍯  (गू, गे, गो, सा, सी, सू, से, सो, दा)
मीन 🐳  (दी, दू, थ, झ, ञ, दे, दो, चा, ची)
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इन चार रात्रियों को जागरण करना चाहिए अर्थात सोना नहीं चाहिए , भजन कीर्तन प्रभु गुणगान पूरी रात करना चाहिए , 
जन्माष्टमी , दीपावली , महाशिवरात्रि ,  होली (दहन)


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सूर्यग्रहण
दिनांक 14 अक्टूबर 2023 (शनिवार)
उपछाया / कंकणाकृति सूर्यग्रहण
सूर्य ग्रहण रात 8:34 से मध्यरात्रि  2:25 तक 
नोट : यह सूर्यग्रहण भारत में दृश्य मान नहीं होगा भारत में इस सूर्यग्रहण का कोई भी प्रभाव नहीं होगा और ना ही इसका सूतक काल माना जाएगा
प्राचीन परम्परा के अनुसार ग्रहण के समय क्या करें ?
ग्रहण के समय रुद्राक्ष की माला धारण करने से पाप नाश हो जाते हैं
ग्रहण लगने के पहले खान - पान ऐसा करिए कि आपको बाथरूम में ना जाना पड़े
ग्रहण के समय हज़ार काम छोड़ कर मौन और जप करिए
ग्रहण के समय दीक्षा अथवा दीक्षा लिए हुए मंत्र का जप करने से सिद्धि हो जाती है
ग्रहण के समय भगवान का चिंतन, जप, ध्यान करने पर उसका लाख गुना फल मिलता है
ग्रहण के समय अपने घर की चीज़ों में कुश, तुलसी के पत्ते अथवा तिल डाल देने चाहिए
प्राचीन परम्परा के अनुसार ग्रहण के समय क्या न करें ?
ग्रहण के समय मूत्र त्याग नहीं करना चाहिए, दरिद्रता आती है
ग्रहण के समय शौच नहीं जाना चाहिए, वर्ना पेट में कृमि होने लगते हैं
ग्रहण के समय सोने से रोग बढ़ते हैं
ग्रहण के समय धोखाधड़ी और ठगाई करने से सर्पयोनि मिलती है
ग्रहण के समय सम्भोग करने से सुअर की योनि मिलती है
ग्रहण के समय जीव-जंतु या किसी की हत्या हो जाय तो नारकीय योनि में जाना पड़ता है
ग्रहण के समय भोजन व मालिश करने वाले को कुष्ट रोग हो जाता है
ग्रहण के समय पत्ते, तिनके, लकड़ी, फूल आदि नहीं तोड़ने चाहिए
ग्रहण के समय दूसरे का अन्न खाने से 12 साल का किया हुआ जप, तप, दान स्वाहा हो जाता है- स्कन्द पुराण

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दीपावली
12.11.2023
दीपावली की संध्या को तुलसी जी के निकट दिया जलायें, लक्ष्मीजी को प्रसन्न करने में मदद मिलती है
दिवाली के दिन अपने घर के बाहर सरसों के तेल का दिया जला देना, इससे गृहलक्ष्मी बढ़ती है
दीपावली की रात का जप हज़ार गुना फलदाई होता है
दीपावली की रात का जप हज़ार गुना फलदाई होता है
दिवाली के दिन अपने घर के मुख्य द्वार पर नीम व अशोक (आसोपाल ) के पत्तों का तोरण लगा देना , इस पर से पसार होने वाले की रोग प्रतिकारक शक्ति बढेगी
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मास एवं उनका महत्व

कार्तिक मास

स्नानं च दीपदानं च तुलसीवनपालनम् । भूमिशय्या ब्रह्मचर्य्यं तथा द्विदलवर्जनम् । कार्तिक मास में सूर्योदय से पहले स्नान तीर्थ स्नान के समान होता है , जप :- "ॐ नमो नारायणाय"

स्कंद पुराण में लिखा है : ‘कार्तिक मास के समान कोई और मास नहीं हैं, सत्ययुग के समान कोई युग नहीं है, वेदों के समान कोई शास्त्र नहीं है और गंगाजी के समान दूसरा कोई तीर्थ नहीं है ’ – ( वैष्णव खण्ड, का.मा. : १.३६-३७)

*विष्णुसंकीर्तनं सत्यं पुराणश्रवणं तथा । कार्तिके मासि कुर्वंति जीवन्मुक्तास्त एव हि ” - (स्कन्दपुराण, वैष्णवखण्ड, कार्तिकमासमाहात्म्यम, अध्याय 03)

"हरिजागरणं प्रातःस्नानं तुलसिसेवनम् । उद्यापनं दीपदानं व्रतान्येतानि कार्तिके" - (पद्मपुराण, उत्तरखण्ड, अध्याय 115)

महापुण्यदायक तथा मोक्षदायक कार्तिक के मुख्य नियमों में सबसे प्रमुख नियम है : दीपदान । दीपदान का अर्थ होता है आस्था के साथ दीपक प्रज्वलित करना। कार्तिक में प्रत्येक दिन दीपदान जरूर करना चाहिए। पद्मपुराण उत्तरखंड, अध्याय 121 में कार्तिक में दीपदान की तुलना अश्वमेघ यज्ञ से की है सूर्यग्रहे कुरुक्षेत्रे नर्मदायां शशिग्रहे ।। तुलादानस्य यत्पुण्यं तदत्र दीपदानतः । अर्थात कुरुक्षेत्र में सूर्यग्रहण के समय और नर्मदा में चन्द्रग्रहण के समय अपने वजन के बराबर स्वर्ण के तुलादान करने का जो पुण्य है वह केवल दीपदान से मिल जाता है। कार्तिक में प्रतिदिन दो दीपक जरूर जलाएं । एक गाय के घी का श्रीहरि नारायण के समक्ष तथा दूसरा तेल का शिवलिंग के समक्ष ।

दातव्यो न तु भूमौ कदाचन।* *सर्वसहा वसुमती सहते न त्विदं द्वयम्।।
अकार्यपादघातं च दीपतापं तथैव च। तस्माद् यथा तु पृथ्वी तापं नाप्नोति वै तथा।। - कालिका पुराण
( दीपक रखने से पहले उसको चावल अथवा गेहूं अथवा सप्तधान्य का आसन दें। दीपक को भूल कर भी सीधा पृथ्वी पर न रखें)
 मार्गशीर्ष (मंगसिर) 
मार्गशीर्ष मास में विश्वदेवताओं का पूजन किया जाता है कि जो गुजर गये उनके आत्मा शांति हेतु ताकि उनको शांति मिले
“पूर्णे वर्षसहस्रे तु तीर्थराजे तु यत्फलम् । तत्फलं लभते पुत्र सहोमासे मधोः पुरे ।।” - स्कन्दपुराण
( तीर्थराज प्रयाग में एक हजार वर्ष तक निवास करने से जो फल प्राप्त होता है, वह मथुरापुरी में केवल अगहन (मार्गशीर्ष) में निवास करने से मिल जाता है )
“मार्गशीर्षे ऽन्नदस्यैव सर्वमिष्टफलं भवेत् ॥ पापक्षयं चेष्टसिद्धिं चारोग्यं धर्ममेव च॥” - विश्वेश्वर संहिता , शिवपुराण
( मार्गशीर्ष मास में अन्न का दान करने वाले मनुष्यों को ही सम्पूर्ण अभीष्ट फलों की प्राप्ति हो जाती है | मार्गशीर्ष मास में अन्न का दान करने वाले मनुष्य के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं )
“मार्गशीर्षं तु वै मासमेकभक्तेन यः क्षिपेत्। भोजयेच्च द्विजाञ्शक्त्या स मुच्येद्व्याधिकिल्बिषैः।।
सर्वकल्याणसम्पूर्णः सर्वौषधिसमन्वितः। कृषिभागी बहुधनो बहुधान्यश्च जायते।।” - अध्याय 106 , अनुशासन पर्व , महाभारत
(जो मार्गशीर्ष मास को एक समय भोजन करके बिताता है और अपनी शक्ति के अनुसार ब्राह्माण को भोजन कराता है, वह रोग और पापों से मुक्त हो जाता है । वह सब प्रकार के कल्याणमय साधनों से सम्पन्न होता है। मार्गशीर्ष मास में उपवास करने से मनुष्य दूसरे जन्म में रोग रहित और बलवान होता है। उसके पास खेती-बारी की सुविधा रहती है तथा वह बहुत धन-धान्य से सम्पन्न होता है )
“मासानां मार्गशीर्षोऽहं नक्षत्राणां तथाभिजित्” - श्रीकृष्ण , श्रीमद्भागवतगीता
(मैं महीनों में मार्गशीर्ष और नक्षत्रों में अभिजित् हूँ)
“मार्गशीर्षोऽधिकस्तस्मात्सर्वदा च मम प्रियः ।।
उषस्युत्थाय यो मर्त्यः स्नानं विधिवदाचरेत् ।।
तुष्टोऽहं तस्य यच्छामि स्वात्मानमपि पुत्रक ।।” - वैष्णवखण्ड ,स्कन्दपुराण
( मार्गशीर्ष मास मुझे सदैव प्रिय है। जो मनुष्य प्रातःकाल उठकर मार्गशीर्ष में विधिपूर्वक स्नान करता है, उस पर संतुष्ट होकर मैं अपने आपको भी उसे समर्पित कर देता हूँ)
मार्गशीर्ष में सप्तमी, अष्टमी मासशून्य तिथियाँ हैं। मासशून्य तिथियों में मंगलकार्य करने से वंश तथा धन का नाश होता है।

                                                  संकलनकर्ता  - रमेश खोला ,  10.10.2022

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वार एवं उनका महत्व
रविवार
रविवार के दिन बिल्ववृक्ष का पूजन करना चाहिए। इससे ब्रह्महत्या आदि महापाप भी नष्ट हो जाते हैं- स्कंद पुराण
रविवार के दिन मसूर की दाल, अदरक और लाल रंग का साग नहीं खाना चाहिए - ब्रह्मवैवर्त पुराण (श्रीकृष्ण खंडः 75.90)
रविवार के दिन काँसे के पात्र में भोजन नहीं करना चाहिए - ब्रह्मवैवर्त पुराण (श्रीकृष्ण खंडः 75)
रविवार के दिन स्त्री-सहवास तथा तिल का तेल खाना और लगाना निषिद्ध है - ब्रह्मवैवर्त पुराण ( ब्रह्म खंडः 27.29-38)
                                                          संकलनकर्ता   - रमेश खोला ,  21.08.2022

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तिथि एवं उनका महत्व
 प्रतिपदा (एकम ) : धार्मिक अनुष्ठान के लिए उत्तम तिथि ( अधिपति देव : अग्नि देव )
“ऊँ महाज्वालाय विद्महे अग्नि मध्याय धीमहि ।
तन्नो: अग्नि प्रचोदयात ।।”

द्वितीया ( दौज ) : नव निर्माण शुरू  करने के लिए उत्तम तिथि ( अधिपति देव : ब्रह्मा जी )
दौज को बृहती (छोटा बैगन या कटेहरी) खाना निषिद्ध है (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)
ॐ चतुर्मुखाय विद्महे, कमण्डलु धाराय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात्॥ 

तृतीया ( तीज ) : मुंडन आदि कार्यों के लिए उत्तम तिथि ( अधिपति देवी : माता गौरी )
 या देवी सर्वभू‍तेषु मां गौरी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

चतुर्थी ( चौथ ) : बाधा दूर करने के लिए उत्तम तिथि ( अधिपति देव : श्री गणेश जी और यमदेव )
वक्रतुण्ड महाकाय सुर्यकोटि समप्रभ निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा
धर्मराज नमस्तुभ्यं नमस्ते यमुनाग्रज।

पंचमी ( पांचे ) : सर्जरी / चिकित्सा आदि के लिए उत्तम तिथि ( अधिपति देव : नागदेव )

 नमोस्तु सर्पेभ्यो ये के च पृथ्वीमनु। येऽ अंतरिक्षे ये दिवितेभ्य: सर्पेभ्यो नम:।।


षष्टी ( छठ ) : उत्सव मनाने के लिए उत्तम तिथि ( अधिपति देव : कार्तिकेय )
ॐ तत्पुरुषाय विधमहे: महा सैन्या धीमहि तन्नो स्कंदा प्रचोदयात'
षष्ठी को नीम की पत्ती, फल या दातुन मुँह में डालने से नीच योनियों की प्राप्ति होती है- (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)

सप्तमी ( सातै) : खरीददारी / यात्रा शुरू करने के लिए उत्तम तिथि ( अधिपति देव : सूर्य देव )
ॐ हृां मित्राय नम:
ॐ हृीं रवये नम:
 ॐ हूं सूर्याय नम:
ॐ ह्रां भानवे नम:
ॐ हृों खगाय नम:
ॐ हृ: पूषणे नम:
ॐ ह्रां हिरण्यगर्भाय नमः
ॐ मरीचये नमः
ॐ आदित्याय नमः
ॐ सवित्रे नमः
ॐ अर्काय नमः
ॐ भास्कराय नमः

अष्टमी ( आठै ) : जीत दिलाने के लिए उत्तम तिथि , केवल कृष्ण पक्ष में पूजा लाभ कारी होगी , शुक्ल पक्ष में वर्जित ( अधिपति देव : रूद्रदेव )
ॐ नमो भगवते रुद्राय।।

नवमी ( नौमी ) : युद्ध शुरुआत के लिए उत्तम तिथि ( अधिपति देवी  : अम्बिका )
ह्रीं श्री अम्बिकायै नम: ।
नवमी को लौकी खाना गोमांस के समान त्याज्य है - ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34

दशमी : धार्मिक / आध्यात्मिक कार्यों के लिए उत्तम तिथि ( अधिपति देव : धर्मराज )
ऊँ धर्मराजाय नम:

एकादशी ( ग्यारस ) : पूजा / व्रत / धर्मस्थान यात्रा / दान आदि के लिए उत्तम तिथि ( अधिपति देव : महादेव )
एकादशी व्रत के पुण्य के समान और कोई पुण्य नहीं है । जो पुण्य गौ-दान सुवर्ण-दान, सूर्यग्रहण में दान, अश्वमेघ यज्ञ से होता है, उससे अधिक पुण्य एकादशी के व्रत से होता है | एकादशी के व्रत से कीर्ति बढ़ती है, श्रद्धा-भक्ति बढ़ती है, धन-धान्य, पुत्रादि की वृद्धि होती है | एकादशी करनेवालों के पितर नीच योनि से मुक्त होते हैं ।
।।ॐ नम: शिवाय।।
 ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान्मृ त्योर्मुक्षीय मामृतात्

द्वादशी : धार्मिक अनुष्ठान के लिए उत्तम तिथि ( अधिपति देव : भगवान विष्णु )
सच्चिदानंदरूपाय विश्वोत्पत्यादिहेतवे |
तापत्रयविनाशाय श्रीकृष्णाय वयं नुमः ||
ॐ नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।।

एकोऽपि कृष्णस्य कृतः प्रणामो दशाश्वमेधावभृथेन तुल्यः ।
दशाश्वमेधी पुनरेति जन्म कृष्णप्रणामी न पुनर्भवाय ॥
- महाभारत, शान्तिपर्व॰ ४७/९२
एको हि कृष्णस्य कृतः प्रणामो दशाश्वमेधावभृथेन तुल्यः ।।
दशाश्वमेधी पुनरेति जन्म कृष्णप्रणामी न पुनर्भवाय ।। ६-३ ।।
- नारदपुराण , उत्तरार्ध, ६/३
एकोऽपि गोविन्दकृतः प्रणामः शताश्वमेधावभृथेन तुल्यः ।।
यज्ञस्य कर्त्ता पुनरेति जन्म हरेः प्रणामो न पुनर्भवाय ।।
- स्कन्दपुराण, वैष्णवखण्ड
अर्थात ... भगवान्‌ श्रीकृष्ण की शरण में जाना तो. दस अश्वमेघ यज्ञों के अन्त में किये गये दिव्य स्नान के समान फलदायक होता है। दस अश्वमेघ करने वाला तो संसार के बन्धनों (आवागमन) से मुक्त भी नहीं होता है, परंतु श्री कृष्ण की शरण में जाने वाला संसार के बन्धनों से मुक्त हो जाता है ।

त्रयोदशी ( तेरस) : प्रेम / प्यार / मित्रता के लिए उत्तम तिथि ( अधिपति देव : कामदेव )
'ऊँ कामदेवाय विद्महे, रति प्रियायै धीमहि, तन्नो अनंग प्रचोदयात्। '

चतुर्दशी ( चौदस ) :  प्रेत बाधा दूर / सिद्धि प्राप्त करने के लिए उत्तम तिथि ( अधिपति देवी : काली मैय्या )
”ॐ क्रीं कालिकायै नमः”

अमावस्या ( मावस ) : पितृ पूजन / पिंड दान / दान धर्म आदि के लिए उत्तम तिथि ( अधिपति देव : पितृदेव )
ॐ पितृगणाय विद्महे जगत धारिणी धीमहि तन्नो पितृो प्रचोदया

पूर्णिमा ( पूर्णमासी ) : व्रत /  यज्ञ / कथा आदि के लिए उत्तम तिथि , पूर्णिमा और व्रत के दिन स्त्री-सहवास तथा तिल का तेल खाना और लगाना निषिद्ध है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-38) ( अधिपति देव  : चन्द्रमा )
ॐ सों सोमाय नम:।
                                                         संकलनकर्ता रमेश खोला ,  06.05.2022
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महत्वपूर्ण बातें

क्या आप जानते है ? पांडवों ने ये 5 गांव कौरवो से मांगे थे - पांडुप्रस्थ (पानीपत), स्वर्णप्रस्थ (सोनीपत) , व्याघ्रप्रस्थ (बागपत), वारणावर्त (बरनावा , हिण्डन/, यहाँ लाक्षागृह बनाया था ) और वरुपत (तिलपत , फरीदाबाद)

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क्या आप जानते है ? , ईशान कोण में तुलसी का पौधा लगाने से तथा पूजा के स्थान पर गंगाजल रखने से घर में लक्ष्मी की वृद्धि होती है | घर के अंदर, लक्ष्मी जी बैठी हों ऐसा फोटो रखना चाहिए और दुकान के अंदर, लक्ष्मी जी खड़ी हों ऐसा फोटो रखना चाहिए

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।। अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता । अस बर दीन्ह जानकी माता ।। - तुलसीदास जी (श्री हनुमान चालीसा)

आठ सिद्धियाँ इस प्रकार हैं :- (1) अणिमा (2) महिमा (3) गरिमा (4) लघिमा (5) प्राप्ति (6) प्राकाम्य (7) वशित्व (8) ईशित्व ।

आठ सिद्धियों के प्राप्ति फल के बारे में जानने के लिए नीचे क्लिक करें 

अष्ठ सिद्धि प्राप्ति फल

नौ निधियां इस प्रकार है :- (1) पद्म निधि (2) महाप निधि (3) मकर निधि (4) कच्छप निधि (5) मुकुन्द निधि (6) कुन्द (नन्द) निधि (7) नील निधि (8) शंख निधि (9) मिश्र निधि

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10 इन्द्रियां एवं उनके स्वामी 

पांच ज्ञानेंद्रियां एवं उनके देवता चक्षु (नेत्र) : भास्कर (सूर्य ) कर्ण (कान) : आकाश (दिशा ) नासिका (नाक) : पृथ्वी ( अश्वनी कुमार ) रसना (जिह्वा ) : वरुण (जल ) त्वक (चर्म/खाल/त्वचा ) : वायु ( पवन )

पांच कर्मेंद्रियां एवं उनके देवता हस्त (हाथ ) : इंद्र चरण : उपेंद्र ( विष्णु ) वाणी (मुँह ) : अग्नि उपस्थेन्द्रिय / लिंग (लघुशंका इंद्री ) : प्रजापति पायु /गुदा (निव्रतेंद्री ) : यमराज (मृत्यु)

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संकलनकर्ता  रमेश खोला ,  06.05.2022

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